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अनेकान्त: स्वरूप और विश्लेषण प्रस्तुत किए जा रहे विषय को न समझ पाने में है, यह तो निर्णय कर्ता पर छोड़ दिया जाय परन्तु वस्तु तो एक है, उस वस्तु को देखने वाले अनेक हैं, उसमें एक द्रष्टा 'स्याद्वाद' है जो विभिन्न द्रष्टाओं की कथन पद्धति और उनके द्वारा प्रयुक्त किए गए अनेक विचारों का मंथन कर, उसे नवनीत के रूप में जिसमें विरोध की सम्भावना नहीं है, स्वतः सिद्ध है, जो पर परस्पर विरोधी नहीं है। स्याद्वाद द्रष्टा है अनन्त का
“णियम-णिसेहणसीलो, णिपादणादो य जो हु खलु सिद्धो। सो सियसद्दो भणिओ, जो सावेक्खं पसाहेदि१०२।।
जो नियम से निषेधनशील है, निपात संज्ञक रूप में सिद्ध है, जो 'स्यात्' शब्द से युक्त है तथा जो वस्तु की सापेक्षता को सिद्ध करने वाला है, जो सर्वथा एकान्त को छोड़कर किंचित् व कथंचित् आदि के आश्रय से वस्तुतत्त्व का विधान करता है, जो हेय
और उपादेय की व्यवस्था करता है, उसका नाम 'स्याद्वाद्' है। स्यात् शब्द
“सियसद्दो सावेक्खं पसाहेदि।" स्यात् शब्द अपेक्षा को/ सापेक्षता को सिद्ध करता है। यह नय विवक्षा का द्योतक है, मुख्यधर्म एवं गौणधर्म की जिसमें प्रधानता है, जो उभयात्मक पक्ष को प्रस्तुत करने वाला है। 'स्यात्' शब्द निपात है। उसके (i) अनेकान्त (ii) विधि (iii) विचार (iv) वदना, वाद करना, जल्प करना, प्रतिपादन करना, कहना आदि अर्थ हैं।
“सियासद्दो णिवायत्तादो जदि वि अणेगेसु अत्येसु वट्टदे, तो वि एत्थ कत्थ वि काले देसे त्ति एदेसु अत्थेसु वट्टमाणो घेतव्वो१०३।''
अर्थात् ‘स्यात्' शब्द निपात रूप में प्रयुक्त होने के कारण अनेक अर्थों में प्रवर्तित होता है। ‘स्यात्' निपात रूप अव्यय है, इसों संशय या संभावना अर्थ भी सन्निहित है, किन्तु यहाँ 'स्यात् ' शब्द संशय अर्थ में नहीं ग्रहण करना चाहिए। यदि ऐसा किया जाता है तो सर्वज्ञ द्वारा प्रतिपादित वचन-व्यवहार का प्ररूपण भी सार्थक एवं बहुव्यापी नहीं हो सकेगा। संशय या संभावना के कारण विवाद ही विवाद होगा, कोई निश्चित् वस्तु के अनन्त धर्मात्मक स्वरूप का प्रवक्ता नहीं होगा, इसलिए 'स्यात् ' शब्द को वचन सापेक्ष का द्योतक माना है।” सिया सद्दो दोण्णि-एक्को किरियाए वायथो अवरो णाइवादियो१०४।"
__ स्याद्वाद एक ऐसा वचन-व्यवहार है, जो निश्चित अर्थ की प्रतीति कराता है। 'स्यात् ' शब्द के प्रयोग बिना वस्तु का यथार्थ कथन नहीं हो पाता है और न वस्तु के अयथार्थ का निषेध ही हो पाता। 'स्याद्वाद' 'स्यात् ' और 'वाद' इन दोनों के मेल से 'स्याद्वाद' शब्द बना है। न्यायावतार में 'स्याद्वाद' को निर्दिश्यमान का व्याख्याता और शेष
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