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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
प्रमाणे भवत: परोक्षं प्रत्यक्षं च२२।
प्रमाण के दो भेद-परोक्ष और प्रत्यक्ष हैं। जिस ज्ञान के उत्पन्न होने में स्व-अपने से भिन्न, पर-अन्य वस्तु की अपेक्षा हो वह परोक्ष है तथा ज्ञान-आत्मा से वस्तु तत्त्व का ज्ञान हो वह प्रत्यक्ष है। प्रत्यक्ष भी देश प्रत्यक्ष और सकल प्रत्यक्ष दो हैं। देश प्रत्यक्ष-इसका विषय नियत और अपरिपूर्ण होता है और सकल प्रत्यक्ष-त्रैकालिक वस्तुओं और उनकी अनन्तानन्त अवस्थाओं को विषय करने वाला होता है।
अवधि, मन:पर्यय और केवल ये प्रत्यक्ष के समीचीन भेद हैं ये भी प्रमाण हैं। "प्रत्यक्षानुमानोपमानशब्दाः प्रमाणानि२३।' ज्ञान, प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, और शब्द भी प्रमाण हैं, अनुमान, उपमान, शब्द अपरिपूर्ण, युक्ति शून्य हैं, मिथ्यादर्शनादि से दूषित हैं।
“मति-स्मृति-संज्ञा-चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनान्तरम्२४।
अर्थात् मति, स्मृति, चिन्ता और अभिनिबोध वस्तुतः एक ज्ञान अर्थ के वाचक हैं, फिर भी ये भिन्न-भिन्न विषय के प्रतिपादक हैं, इसलिए इनका स्वरूप भिन्न-भिन्न है। अनुभव, स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान भी एक ज्ञान के वाचक हैं और भिन्नभिन्न अर्थ के प्रतिपादक हैं। अनेकान्त की दृष्टि 'अनेके अंता धर्माः' यहाँ सर्वत्र चरितार्थ होती है। प्रमाण या प्रमाण के भेद अनेकान्त के वचनात्मक प्रहरी हैं। नय-लोक व्यवहार
जावइया वयणवहा, तावइया चेव होंति णयवाया। जावइया णयवाया, तावइया चेव परसमया ।।२५
वस्तुगत, वस्तु स्वभाव, वस्तु तत्त्वगत धर्मों का प्रतिपादन करने के लिए वादी जितने वचनमार्ग का आश्रय लेता है, उतने ही लोक-व्यवहार को चलाने के लिए 'नयवाद' हैं और जितने नयवाद हैं, उतने ही लोक में परसमय हैं/पर सिद्धान्त हैं/परमत हैं। अभिप्राय विशेष से किए गए वचन जितने प्रकार के होंगे, उतने ही 'नय' होंगे।
सामान्य रूप से परस्पर निरपेक्ष वचन व्यवहार परसमय है तथा सापेक्ष वचन व्यवहार स्व समय है। अत: जितने भी परस्पर निरपेक्ष विचारवान हैं या हो सकते हैं, उतने ही परसमय हैं। नय का सामान्य लक्षण
वस्तु/पदार्थ के एक अंश को समझाने वाला, निश्चय करने वाला, जानने वाला, 'नय' होता है। “वस्तुन्यनेकान्तात्मनि अविरोधेन हेत्वर्पणात् साध्यविशेषस्य याथात्म्यप्रापणप्रवण-प्रयोगो नय:२६' अर्थात् वस्तु अनेकान्तात्मक होने पर विरोध के बिना हेतु की मुख्यता से साध्यविशेष की यथार्थता को प्राप्त कराने में समर्थ प्रयोग को नय कहा जाता है। नय प्रापक है, कारक है, साधक है, निर्वर्तक है, निर्णायक है, उपालम्भक और व्यञ्जक
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