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________________ अनेकान्तः स्वरूप और विश्लेषण 227 अनेकान्त क्या है? को अणेयंतो? अनेकान्त क्या है? यह एक प्रश्न है? इस प्रश्न का समाधान आगम, सिद्धान्त ग्रन्थों के अतिरिक्त न्याय एवं काव्य-परम्परा के ग्रन्थों में दार्शनिक चिन्तन द्वारा विविध रूपों में किया जाता रहा है। प्रत्येक पदार्थ/प्रत्येक वस्तु के अस्तित्व को तर्क की कसौटी पर कसकर उसे अनेकान्त की मथनी द्वारा मथकर, नवनीत बनाया और फिर उस नवनीत को भी एक नया रूप दिया गया। वस्तु एक है, परन्तु वह अनेक रूपों में विद्यमान है, इसलिए अनेक धर्मों से युक्त है। वस्तु में तत्-अतत्, एक-अनेक, सत्असत्, नित्य-अनित्य, सामान्य-विशेष, भाज्य-विभाज्य, भेद-अभेद, अवयव-अवयवी आदि वस्तुत्व को उत्पन्न करने वाली परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों का उद्घाटन अनेकान्त "अनेके अंता धर्माः सामान्य-विशेष-पर्याया गणा यस्येति सिद्धोऽनेकान्तः ।"२ अर्थात् सामान्य-विशेष पर्याय या गुणरूप अनेक अन्त या धर्म जिसमें पाये जाते हैं, वह अनेकान्त रूप सिद्ध होता है। अनेकान्त में एक ही समय में, एक ही स्थान पर प्रतिपक्षी अनेक धर्मों की प्ररूपणा युक्ति एवं आगम से की जाती है, जो अविरुद्ध होती है। उसी वस्तु का वचन व्यवहार से भी अनेक रूपों में प्रतिपादन किया जाता है। क्योंकि एक ही वस्तु में युगपत् वृत्ति पायी पाती है अर्थात् वस्तु में एक ही समय अनेक विरोधी धर्मों, गणों, स्वभावों एवं पर्यायों का जहाँ समावेश हो जाता है, जहाँ उनसे वस्तु प्रतीति का कारण बन जाती है, वह अनेकान्त का परिचायक बन जाती है। प्रत्येक वस्तु अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के विस्तार को लिए हुए है। इन्हीं के अनुसार वस्तु के वस्तुत्वपने की सिद्धि होती है और इन्हीं से वस्तु के वस्तुत्वपने का निषेध भी होता है। जैसे 'कलम' द्रव्य की अपेक्षा से अपने स्वरूप को लिए हुए है, पुस्तक के स्वरूप को नहीं। 'कलम' और 'पुस्तक' द्रव्य अवश्य हैं; परन्तु क्षेत्र, काल, और भाव की अपेक्षा एक-दूसरे से पृथक् हैं। दीपक से लेकर आकाश पर्यन्त 'अनन्तधर्मात्मकमेव तत्त्वम्' अनन्त धर्मात्मक ही तत्त्व हैं। भिन्न-भिन्न दृष्टियों से वस्तु का प्रतिपादन करना, उनका अवलोकन दर्शन का वास्तविक मार्ग है, यही अनेकान्त है। जिसके ज्ञान से, जिसके प्रयोग से, जिसके आधार पर गमन करने से एवं जिसके अनुसन्धान से प्रत्येक वस्तु का ज्ञान हो जाता है। “एकेन मृत्पिण्डेन. विज्ञानेन मृण्मयं विज्ञानं स्यात् ।''३ जैसे एक मिट्टी के पिण्ड से बनी हुए वस्तु से समस्त पदार्थों का ज्ञान हो जाता है, उसी तरह एक अनेकान्त के सिद्धान्त से संसार के समस्त पदार्थों का ज्ञान हो जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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