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________________ 40 Homage to Vaisali आँख भर कर देख अपने प्रिय शिष्य से कहा-"आनन्द ! तथागत (बुद्ध) यह अन्तिम बार वैशाली का दर्शन कर रहा है। इसी वैशाली के प्रति उस दयामूर्ति के हृदयोद्गार थे"आनन्द ! रमणीय है वैशाली, रमणीय है उसका उदयन-चैत्य, गोतमक-चैत्य, सप्ताम्रक-चैत्य, बहुपुत्रक-चैत्य, सारंदद-चैत्य / " ये चारों चैत्य वैशाली नगरद्वार के बाहर क्रमशः पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर दिशाओं में देवस्थान तथा बनपुष्करिणीसहित रमणीय भूभाग थे / वैशालीबासी लिच्छवि भगवान् के दर्शन के लिये वैशाली नगरी से कुछ दूर दक्षिण में अवस्थित अम्बपाली-वन में पहुंचे / उन्हें देखकर बुद्ध ने कहा था- "देखो भिक्षुओ! लिच्छवियों की परिषद् को, देखो भिक्षुओ! लिच्छवियों की परिषद् को। भिक्षुओ! इस लिच्छवि-परिषद् को त्रायस्त्रिंश (देवताओं) की परिषद् समझो।"२ त्रायस्त्रिश इन्द्रलोक के देवता हैं / बुद्ध ने वैशालीवासियों की उपमा उनसे दी थी, यह प्रकट करता है, कि बुद्ध के भाव इस भूमि के निवासियों के प्रति कैसे थे। ... वर्षकार को अजातशत्रु ने बुद्ध के पास भेजा था कि उनसे ऐसा कोई उपाय मालूम करें, जिसमें वज्जियों को आसानी से हराया जा सके। बुद्ध को कितना कटु लगा होगा यह प्रश्न, और इसीलिये उन्होंने वर्षकार को सीधे जबाब न दे, पीछे खड़े हो पंखा झलते आनन्द से कहा. "आनन्द ! सुना है न कि वज्जी (1) बराबर सभा करके, बार बार सभा करके अपना काम करते हैं ?" "सुना है भगवान् !"...... "आनन्द ! जब तक वज्जी समा, बार बार सभा करके काम करेंगे, तब तक वज्जियों को उन्नति होगी, हानि नहीं।" . इसी तरह बुद्ध ने वज्जियों की समृद्धि और स्वतन्त्रता की कुंजी सात बातों को एक-एक करके दोहरायाः वैशाली के प्रजातन्त्री (1) सभा में बहुमत से निर्णय करके किसी काम को करते थे; (2) वह एकराय से काम करते, उठते-बैठते थे; (3) अवैधानिक, बस्मिधर्म (वैशाली के कानून)-विरुद्ध कोई काम नहीं करते थे; (4) अपने वृद्धों का सम्मानसत्कार करते, उनकी बात पर कान देते थे; (5) स्त्रियों पर अत्याचार और जबदस्ती नहीं करते थे; (6) नगर के मोतर और बाहर के चैत्यों (देवस्थानों) का सत्कार-सम्मान करते और उनके लिये प्रदत्त सम्पत्ति और धार्मिक बलि को छीनते नहीं थे; (7) धर्माचार्यो (अहंतों) की रक्षा करते और इस बात का ध्यान रखते कि वे देश में सुख से विचरें। वैशाली-वामियों के ये सात गुण बुद्ध को बहुत पसन्द आये थे। इनमें पहले तीन तो जनतान्त्रिक व्यवस्था के मूलमंत्र हैं। वृद्धों और स्त्रियों के प्रति सम्मान का भाव उनकी 1. वही। 2. बोधनिकाय-महापरिनिम्बाणसुत्त (पृष्ठ 133) /
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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