________________ वैशाली-दिग्दर्शन 291 थी जिसे अष्टकुलक कहते थे। आठ प्रमुख गणराजन इसके सदस्य थे और प्रायः गणसमा इन्हें चुना करती थी। अटकुलकों में से प्रत्येक का अलग-अलग रंग था, विशेष उत्सवों और अवसरों पर हरेक अष्टकुलक उसी रंग के वस्त्र आभूषण पहन कर, उसी रंग के घोड़े पर सवार होकर जाते। जब गणसभा की बैठक होती तो उसे गणसन्निपात कहा जाता और उस बैठक के स्थान-समाभवन का नाम था संस्थागार / संस्थागार के निकट ही एक पुष्करिणी पी-'अभिषेक-पुष्करिणी' जिसमें केवल गणराजन् ही स्नान करने के अधिकारी थे। जब नये गणराजन का अभिषेक होता, तब बड़े समारोह के साथ वह इस पुष्करिणी में स्नान करता ।...."देखते हो वह पुष्करिणी ?......" ग्रा०-वह ? वह तो 'खरौना पोखर' है / ५०-वहीं अभिषेक-पुष्करिणी थी भाई ! उसके दोनों तरफ जो टीले देखते हो वहां उन्नत शिखरवाले भवन थे, जहाँ लिच्छवि ललनाएं बैठकर अभिषेकोत्सव देखती थीं। (रुक जाता है / उस नीरव में वीणा के कुछ मंद स्वर जो क्रमशः तीव्र होते जाते हैं और उसमें और वाद्यों का संगीत भी मिलता जाता है।) ग्रा०-कहो पथिक ! रुक क्यों गये? . प०--तुम्हें कुछ दीखता है? वह-भवनों की रूपरेखा। प्रा०-हो-आ।..."संस्थागार, पुष्करिणी, जैसे बादलों के पीछे चांद१०- अभिषेक-पुष्करिणी-वे भवन, वह जनसमूह --(वाद्यस्वर तीव्र हो रहा है।) ग्रा० - यह क्या हो रहा है, पथिक ! यह कैसा चमत्कारपूर्ण दृश्य ! १०-सदियों के पर्दे उठे हैं।.... समय का पंछी हमें उड़ाये लिए जा रहा है-ढाई हजार बरस पूर्व / वह देखो... " ढाई हजार वर्ष पूर्व लिच्छवियों का अभिषेकोत्सव / . (वाद्य-स्वर घोर निनाद में परिणत हो जाता है—तुरीयगति से / ) (कोलाहल, फिर एक उच्च स्वर / ) प्रतिहारी-“सावधान, सावधान, सर्वगुणसम्पन्न लिच्छविगणाधिपति अष्टकुलक पधारते हैं / सबसे आगे महानायक चेटक हैं। उनके पीछे अन्य सातों वर्णवाले अष्टकुलक हैं / और सबसे पीछे आज के अभिषेकपात्र उपराजन् महालि हैं, जिन्हें गणसन्निपात ने गणराजन चुना है। महानायक दीक्षा देंगे। आर्यमहालि लिच्छविगण के प्रति प्राणप्रतिष्ठा की शपथ लेंगे। उनके बाद युवक-युवतियों का यूथनृत्य होगा।- सावधान ! / (तुरही का स्वर) अभिवादकगण-"पीतास्या, पीतरपा, पीतरश्मि प्रत्योदमुष्णीशा। . पीता च पंचककुदा पीता वस्त्रा अलंकारा / नीलास्या, नीलरथा, नीलरश्मि प्रत्योदमुष्णीशा / नीला च पंचककुदा नीला वस्त्रा अलंकारा।"