________________ जैन दृष्टिकोण से वैशाली विजयेन्द्र सूरि, इतिहासतत्त्वमहोदधि भौगोलिक स्थिति प्राचीन वैदिक साहित्य में विदेह की राजधानी मिथिला बताई गई है। और वृहद्विष्णुपुराण में विदेह की सीमा बताते हुए लिखा है : विदेह के पूर्व में कौशिकी (आधुनिक कोशी), पश्चिम में गण्डकी, दक्षिण में गंगा और उत्तर में हिमालय है। पूर्व से पश्चिम की ओर 24 योजन (लगभग 180 मील) और उत्तर से दक्षिण में 16 योजन (लगभग 125 मील) है। इसी प्रकार विक्रम सं० १२वीं शताब्दी के जैन अन्य प्रवचनसारोद्धार तथा विक्रम सं० १४वीं शताब्दी के विविध तीर्थकल्प में विदेह जनपद की राजधानी मिथिला बताई है / विविधतीर्थकल्प में ही विदेह जनपद को मारतवर्ष के पूर्व देश में बताया है तथा इसका प्रचलित नाम 'तिरहुत' लिखा है। परन्तु इन दोनों ग्रन्थों से भी बहुत प्राचीन ग्रन्थ निरयावलियाओं में विदेह की राजधानी वैशाली बताई है तथा विक्रम सं० १२वीं शताब्दी में निर्मित त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरितम् में भी विदेह की राजधानी वैशाली होने की पुष्टि की गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि भिन्न-भिन्न कालों में विदेह की राजधानी में परिवर्तन होता रहा है। वैदिक साहित्य के प्रसिद्ध जनकों की राजधानी मिथिला रही होगी और बाद में 1. शतपय ब्राह्मण प्रथमकाण्ड, 4 अ० 1 आ०; वहविष्णुपुराण मिथिलाखण्ड। 2. प्रवचनसारोद्धार वृत्तिसहित पत्र 446 / 3. विविधतीर्थकल्प (सिन्धी ग्रन्थमाला) पृष्ठ 32 / 4. निरयावलियाओ (ए० एस० गोपानी और घो० जे० चोक्षी द्वारा सम्पादित), पृष्ठ 26 / 5. त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरितम् पत्र 77, (पर्व 10, सर्ग 6) /