________________ 240 Homage to Vaisaly जहाँ भगवान् बुद्ध ने अपना चातुर्मास्य बिताया। इसके पास ही 'वेणुग्राम' का उल्लेख मिलता है जहाँ बुद्ध ने वर्षा में निवास किया था। इस वर्णन से स्पष्ट है कि वैशाली बड़ी नगरी थी जिसके उपनगर अनेक थे तथा उस समय खूब प्रसिद्ध थे / वैशाली : महावीर की जन्मभूमि वैशाली को हमने महावीर वर्धमान की जन्मभूमि बतलाया है, परन्तु आजकल सर्वसाधारण जैनियों की मान्यता है कि विहार में क्यूल स्टेशन से पश्चिम आठ कोस पर स्थित लच्छु-आड़ गाँव ही महावीर की जन्मभूमि है, परन्तु सूत्रों की आलोचना से यह मान्यता निर्मूल ठहरती है / इस विषय में पं० कल्याणविजयजी गणी ने अपने प्रामाणिक ग्रन्थ 'श्रमण भगवान् महावीर" में जो विचार प्रकट किये हैं, वे मेरी दृष्टि में नितान्त युक्तियुक्त हैं (1) पहली बात ध्यान देने योग्य यह है कि सूत्रों में महावीर विदेह के निवासी माने गये हैं। कल्पसूत्र ने महावीर को 'विदेहे विदेहदिने विदेहजच्चे विदेहसूमाले' अर्थात् विदेह विदेहदत्त विदेहजात्य विदेहसुकुमार) लिखा है। वे 'वैशालिक भी कहे गये हैं। अतः इन्हें विदेह की राजधानी वैशाली का निवासी मानना अनुचित नहीं है। (2) 'क्षत्रियकुण्डग्राम' के राजपुत्र जमालि ने 500 राजपुत्रों के साथ जैनधर्म ग्रहण किया था। इससे यह कोई बड़ा समृद्ध नगर प्रतीत होता है / महावीर का प्रायः नियम सा था कि जहां कोई धनाढय भक्त हो वहां वर्षावास करना। अत: इस 'क्षत्रियकुण्डग्राम' की प्रसिद्धि तथा समृद्धि के अनुकूल महावीर का वर्षावास करना नितान्त स्वाभाविक है, परन्तु यहाँ वर्षावास का बिलकुल उल्लेख नहीं मिलता। इसका कारण क्या ? उचित तो यह मालूम पड़ता है कि यह नगर वैशाली के पास था / अतः वैशाली में वर्षावास करते समय उन्होंने जो उपदेश दिया था उससे कुण्डग्राम के निवासियों ने लाभ उठाया। अत: यहाँ पृथक् रूप से वर्षावास करने का उल्लेख सूत्र-प्रन्यों में नहीं मिलता। (3) प्रव्रज्या के अनन्तर महावीर ने जिन स्थानों पर निवास किया, उन स्थानों की भौगोलिक स्थिति पर विचार करने से स्पष्ट हो जाता है कि वे सब स्थान वैशाली के आसपास थे। दीक्षा लेने के दूसरे दिन महावीर ने कोल्लाक संनिवेश में पारणा की थी। जैनसूत्रों के आधार पर कोल्लाक संनिवेश दो हैं और वे भिन्न-भिन्न स्थानों पर हैं-एक तो वाणिज्यग्राम के पास और दूसरा राजगृह के पास / अब यदि वर्तमान जन्मस्थान को ही ठीक माना जाय, तो वहां से कोल्लाक संनिवेश बहुत ही दूर पड़ता है जहाँ एक ही दिन में पहुँच कर निवास करने की घटना युक्तियुक्त सिद्ध नहीं हो सकती। राजगृह वाला स्थान चालीस मील पश्चिम की ओर पड़ेगा और दूसरा स्थान इससे भी अधिक दूर / अतः महावीर को वैशाली का निवासी मानना ठीक है; क्योंकि यहां से कोल्लाक संनिवेश बहुत ही समीप है। 1. भमण भगवान् महावीर-शास्त्रसंग्रह-समिति, जालौर, के द्वारा प्रकाशित, सं० 1998, "भूमिका (मारवाड़) पृष्ठ 25-28 /