________________ 236 Homage to Vaisali पहुँची। अपनी स्वाभाविक सरलता से बुद्ध ने उसका सत्कार स्वीकार कर उसे प्रतिष्ठा दी। इस व्यवहार ने अम्बपाली के जीवन की गति को एकदम नये मार्ग की ओर मोड़ दिया। चांदी और सोने के जगमगाते झूठे टुकड़ों के मोह को त्याग कर उसका मानस चैतन्य पहली बार किसी अनमोल तत्त्व को पाकर कृतकृत्य हुआ। अपने स्थान को पवित्र बनाने के लिए उसने बुद्ध को अपने यहाँ भिक्षा के लिए आमन्त्रित किया। बुद्ध ने उसके हृदय के भाव का मूल्य आंक कर अपनी स्वीकृति दी। - उसके बाद लिच्छविगण के अभिमानी प्रतिनिधि भी बुद्ध की अभ्यर्थना के लिए उपस्थित हुए। परन्तु बुद्ध अम्बपाली का आतिथ्य स्वीकार कर चुके थे। उसके हृदय की जैसी श्रद्धा वैशाली के उन क्षत्रियों में न थो। उन्होंने अनेक उपायों से-साम, दाम और पण्ड भय से-अम्बपाली के महान् अतिथि को अपने लिए प्राप्त करना चाहा। किन्तु वैशालकों की वह प्रिय गणिका अपने दृढ़ निश्चय से तिल भर भी विचलित न हुई / अम्बपाली के मन की कालिमा नये विचारों के भावावेश से मिट चुकी थी और उसकी दृष्टि में सांसारिक वस्तुओं के मूल्य उलट-पलट गये थे। दसरे दिन उसने अत्यन्त भक्ति और आदर से भगवान बद्ध का अपने भव्य प्रासाद में स्वागत किया और रोम-रोम से अपने आपको उनके चरणों में समर्पित कर दिया। उसके व्यक्तित्व का कोई अंश भी अब उसके अपने लिए सुरक्षित न बच गया था। मौतिक जगत् में अपने आपको पूरी तरह खो कर उसने अपने आध्यात्मिक व्यक्तित्व की महिमा को पूरी मात्रा में पा लिया था। जब वह बुद्ध को मिक्षा करा चुकी, तब उसने अपना सुन्दर उद्यानअम्बपालिवन-उनके चरणों में यज्ञ की पूर्णाहुति स्वरूप अर्पित कर दिया। उसका वह सर्वस्वदक्षिण यज्ञ आज भी अमर है और अम्बपाली का वह आदर्श बौद्धसाहित्य के चुने हुए जीवन को ऊंचा उठाने वाले दृष्टान्तों में है। किस प्रकार भारतीय प्रजाओं में ऊंच-नीच एवं धर्मिष्ठ-पापी के भेदभाव को भुला कर बुद्ध ने अपना लोकोपकारी तन्त्र सर्वत्र सबके लिए फैलाया. अम्बपाली का दृष्टान्त इसका ज्वलन्त उदाहरण है। वैशाली की उस जनपदकल्याणी नागरिका के लिए आज सब नतमस्तक हैं।