________________ प्रथम संस्करण को भूमिका (FOREWORD TO THE FIRST EDITION) वैशाली का स्थान हमारे प्राचीन इतिहास में महत्त्वपूर्ण है। हम उसे भूल-से गये थे। विद्वानों ने विशेष करके स्वर्गीय काशीप्रसाद जायसवाल ने हमारी आँखें खोली और उस अतीत के गौरव की एक झांको दिखलायी। तब से लोगों की अभिरुचि उसे जानने की बढ़ती गयी और वैशाली-महोत्सव उसका एक परिणाम हुआ। 'वैशाली-अभिनन्दन-ग्रन्थ' उस पिपासा को, जो वैशाली-सम्बन्धी ज्ञान के लिए है, दूर करने का एक प्रयत्न है। इसमें देश-विदेश के विद्वानों का सहयोग प्राप्त हुआ है और एक छोटा, पर विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ पाठकों की सेवा में भेंट है। ___आज इस इतिहास के जानने की अधिक आवश्यकता प्रतीत होती है। बहुत दिनों के बाद आज स्वतंत्र प्रजातंत्र हम स्थापित कर रहे हैं। वह भारत के किसी एक छोटे-से-कोने में नहीं, पर इसके सारे विशाल विस्तृत क्षेत्र में / हमारे सामने कठिनाइयों के पहाड़ दीख पड़ते हैं। उनको हमें लाँघना है। अपने विधान के निर्माण में हम बहुत करके पश्चिमीय देशों से विशेष करके इंगलैण्ड और योरोप के दूसरे देशों तथा अमेरिका के इतिहास और विधानों से ही बहुत-कुछ लेना चाहते हैं। उसका एकमात्र कारण उन देशों के इतिहास और विधानों से अधिक परिचय है। वैशाली के इतिहास और वैधानिक कार्य-प्रणाली से हम बहुत सीख सकते हैं ; पर हमारी जानकारी इतनी कम है कि उस ओर ध्यान तक नहीं जाता। अगर हमारा प्रजातंत्र स्थायी, सुव्यवस्थित, सुखी और दृढ़ होना चाहता है, तो उसे भी बुद्ध भगवान् के बतलाये वृजियों के “सत्त अपरिहाणि-धम्म" अर्थात् हानि न होने देनेवाले सात धर्मों की व्यवस्था रखनी होगी। उन्हीं में प्रजातंत्र के मूलमंत्र मिलते हैं / वैशाली का इतिहास केवल राजनीतिक दृष्टि से ही महत्त्वपूर्ण नहीं है। यह चौबीसवें तीर्थंकर वर्धमान महावीर का जन्मस्थान भी है और यहाँ पर ही बौद्धसंघ की प्रसिद्ध द्वितीय संगीति हुई थी। स्वयं बुद्ध भगवान् ने इस स्थान को बार-बार अपनी चरणरज देकर पवित्र और पावन बनाया था। इसकी बार-बार श्रीमुख से उन्होंने प्रशंसा की है और इसकी सभा की देवताओं की सभा से तुलना की है। यह ग्रन्थ इस गौरवपूर्ण प्रजातंत्र की स्मृति एक बार फिर से जाग्रत करे, यही मेरी आशा और अभिलाषा है। राजेन्द्र प्रसाद