________________ 158 Homage to Vaisalt लेकिन, जब उनको मालूम हुआ कि यह आम्रमंजरी है, तब उछल पड़े और कहने लगे कि यही कालिदासवाली आम्रमंजरी है, यही वह ऋतुमंजरी है, जैसा कि कालिदास ने कई बार कहा है ? मैंने कहा-हाँ, यही आम्रमंजरी है, तो बड़े उल्लसित हुए। मेरे मन में प्रश्न उठा कि वे आम्र की मंजरी रोज देखते थे और यहां आने से पहले उन्होंने बीसों बार आम्रमंजरी का अध्ययन किया था, आज कौन-सी नई बात हो गई ? नई बात यह हुई कि उस दिन उस शब्द और अर्थ के साथ अन्तरात्मा का योग हुआ था। पद का अर्थ जानना काफी नहीं है, पद और पदार्थ के भीतर के प्रत्यय होते हैं, भीतर की अन्तरात्मा का योग होता है, यह अन्तरात्मा का योग उस दिन हुआ। वैशाली वही है, जो आज से हजारों वर्ष पहले और आज से सौ-दो सौ वर्ष पहले वह थी। आज नई बात सिर्फ इतनी हुई है कि हमारे चित्त के साथ उसका योग हुआ, उस गौरव का योग हुआ है, फिर अभी योग हुआ है। इतिहास के साथ हमारा सम्बन्ध थोड़े दिनों का है, इसलिए बहुत कम जानता हूँ। आपकी खुदाई में जो थोड़े से खिलौने मिले हैं, थोड़ी-सी मूत्तियां मिली हैं यह काफी नहीं है। लेकिन वे इंगित करती हैं उस महिमा की ओर, कोई उनसे पूछे कि उनका घर कहाँ है ? अगर अंगुली दिखाई, तो अंगुली पकड़कर वे लटक जायेंगी। अंगुली जिस जगह को बता रही है, उसी जगह पर जाना चाहिए / किन्तु, हमें यह नहीं समझना चाहिए कि ये जो भग्नावशेष हैं, वही वैशाली है। नहीं, यह वैशाली का वैभव है। वैशाली के वैभव बतानेवाली अंगुलियां हैं, जो बता रही हैं कि ये चीजें जो संगृहीत हुई हैं, बहुत थोड़ी हैं, पर बहुत बड़ी चीज की ओर इशारा करती हैं, किसी महिमा की ओर इंगित करती हैं, यह हमें समझना चाहिए। __ वैशाली आज भी एक बढ़िया शव-मात्र है / हमारे पुराने ग्रन्थों में मिलता है कि तान्त्रिक लोग शव-साधना किया करते थे। वे लोग बढ़िया शव लाते थे। शव अच्छी जाति का होना चाहिए, और हंसता-हंसता मरा हो, ऐसा नहीं कि रो-रोकर मरा हो / सम्मुख युद्ध में मरा हो, तो और अच्छा / ऐसे सत्पुरुष का शव ले आते थे और नदी के किनारे ले जाकर उल्टा करके उसकी पीठ पर बैठ जाते थे और जप करते थे। जप करते-करते शव का मुंह जब नीचे से ऊपर की ओर उठ जाये, तब समझ जाते थे कि अब सिद्धि मिल गई। इस समय वह शब भगवान् महाकाल का रूप होता था / और कहता था कि जो चाहो माँगो, मैं सब देने को प्रस्तुत हूंराज चाहो, स्वर्ग चाहो, धन चाहो, जो चाहो मैं दे सकता हूँ। ऐसा लोग कहते हैं, पुस्तकों में लिखा है, तो लोग साधना भी करते होंगे। यहाँ हमारे तान्त्रिक लोगों की जो साधना चल रही है, इसमें बड़ी महिमामयी नगरी का शव है, दुनिया में खोजे नहीं मिलेगा। इसकी पीठ पर बैठकर हमें साधना करनी है, और साधना करनी है कि इसका मुँह पीठ की ओर न होकर भविष्य की ओर जाये / हमको इससे प्रेरणा लेनी है। यह उत्सव देखकर हमारे हृदय में यह बात निश्चित रूप से आ रही है कि हम मरे नहीं हैं, अपने पूर्वजों के नाम पर, अपने पुराने गौरव के नाम पर, हम उल्लसित हो सकते हैं। अपनी दलित द्राक्षा को छोड़ सकते हैं / अपने काटे को हटा सकते हैं / पर, किसके