________________ वैशाली-विदेह' धर्म और विद्या का तीर्थ पं० सुखलालजो संघवी उपस्थित सज्जनो, __जब से वैशाली संघ की प्रवृत्तियों के बारे में थोड़ा बहुत जानता रहा हूँ तभी से उसके प्रति मेरा सद्भाव उत्तरोत्तर बढ़ता रहा है / यह सद्भाव आखिर मुझे यहाँ ले लाया है / मैंने सोचकर यही तय किया कि अगर संघ के प्रति सद्भाव प्रकट करना हो तो मेरे लिए संतोषप्रद मार्ग यही है कि मैं अपने जीवन में अधिक बार नहीं तो कम-से-कम एक बार, उनकी प्रवृत्तियों में सीधा भाग लूं। संघ के संचालकों के प्रति आदर व कृतज्ञता दर्शाने का भी सीधा मार्ग यही है। मानव मात्र का तीर्थ दीपंतपस्वी महावीर की जन्म-भूमि और तथागत बुद्ध को उपदेशभूमि होने के कारण वैशालो विदेह का प्रधान नगर रहा है; यह केवल जैनों और बौद्धों का ही नहीं, पर मानवजाति का एक तीर्थ बन गया है। उक्त दोनों श्रमणवीरों ने करुणा तथा मैत्री की जो विरासत अपने-अपने तत्कालीन संघों के द्वारा मानव-जाति को दी थी उसीका कालक्रम से भारत और भारत के बाहर इतना विकास हुआ है कि आज का कोई भी मानवतावादी वैशाली के इतिहास के प्रति उदासीन रह नहीं सकता। मानवजीवन में संबंध तो अनेक हैं, परन्तु चार संबंध ऐसे हैं जो ध्यान खींचते हैंराजकीय, सामाजिक, धार्मिक और विद्याविषयक। इनमें से पहले दो स्थिर नहीं / दो मित्र नरपति या दो मित्र राज्य कभी मित्रता में स्थिर नहीं। दो परस्पर के शत्रु भी अचानक ही मित्र बन जाते हैं, इतना ही नहीं शासित शासक बन जाता है और शासक 1. नौवें वैशाली महोत्सव (मार्च 28, 1953) के अवसर पर दिया गया अध्यक्षीय भाषण /