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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ ७१५ द्वितीय पंचकल्याणक १९७९ में: ___जम्बूद्वीप के मध्य ८४ फुट ऊंचे सुदर्शन मेरु (सुमेरू पर्वत) का निर्माण अप्रैल १९७९ में सम्पन्न हुआ। इसमें विराजमान १६ जिनप्रतिमाओं का प्रतिष्ठा महोत्सव "श्री सुदर्शनमेरू जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव" इस नाम से २९ अप्रैल से ३ मई १९७९ तक सम्पन्न हुआ। इस महोत्सव को सानिध्य प्रदान किया पू० गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने एवं सौभाग्य से आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज से दीक्षित वरिष्ठ मुनिराज आचार्यकल्प श्री श्रेयांससागर जी महाराज का ससंघ सानिध्य प्राप्त हुआ। ये ही श्रेयांससागर जी महाराज चारित्र चक्रवर्ती आचार्य १०८ श्री शांतिसागर जी महाराज की परंपरा के पंचमपट्टाचार्य पद पर १० जून १९९० को प्रतिष्ठापित हुये थे। सन् १९७९ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के प्रतिष्ठाचार्य संहितासूरी ब्र० सूरजमल बाबाजी, निवाई थे। तथा इसमें उत्तर प्रदेश शासन के मंत्री श्री रेवतीरमण ने पधारकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई थी। तृतीय पंचकल्याणक १९८५: २८ अप्रैल १९८५ से २ मई १९८५ तक जम्बूद्वीप जिनबिम्ब प्रतिष्ठापना महोत्सव के नाम से यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में भारतवर्ष के सभी प्रांतों से भक्तगण लगभग १५००० की संख्या में सुदूरवर्ती प्रदेशों से आये तथा आसपास के नगरों से कुल मिलाकर ५०००० लोग प्रतिष्ठा में सम्मिलित हुए। जिनके ठहरने एवं भोजन आदि का सम्पूर्ण प्रबंध अत्यंत कुशलता के साथ किया गया था। इस प्रतिष्ठा में पू० गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का सानिध्य प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ साथ ही आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज के संघ से कुछ मुनिगण एवं आर्यिकायें, मुनि श्री निर्मलसागर जी महाराज के नेतृत्व में आये। इन साधुओं का एवं आ० श्री सुबाहुसागर जी महाराज का सानिध्य पंचकल्याणक को प्राप्त हुआ। इस आयोजन के भी प्रतिष्ठाचार्य संहितासूरी ब्र० श्री सूरजमल जी बाबाजी निवाई थे। इस कार्यक्रम की एक विशेषता यह रही है कि उत्तर प्रदेश सरकार एवं प्रशासन की ओर से भरपूर सहयोग महोत्सव को प्रदान किया गया। उत्तरप्रदेश के मुख्य मंत्री श्री नारायणदत्त तिवारी एवं खाद्य मंत्री प्रो० श्री वासुदेव सिंह स्वयं इस महोत्सव की प्रभावना के लिये सहयोगी रहे। अन्य मंत्री एवं सांसदों की उपस्थिति भी समारोह के लिये गरिमापूर्ण रही। इस प्रतिष्ठा में जम्बूद्वीप के सुदर्शन मेरू के अतिरिक्त शेष ६२ चैत्यालयों में विराजमान ६२ अकृत्रिम जिनप्रतिमाओं एवं १२३ देवभवनों में विराजमान जिनप्रतिमाओं का पंचकल्याणक संपन्न हुआ। इस महोत्सव की विशेषता में एक और कड़ी जुड़ती है, जब तीन वर्ष के अखंड प्रवर्तन के पश्चात् ज्ञानज्योति का मंगल आगमन २८ अप्रैल १९८५ को हस्तिनापुर में होता है और इस ज्ञानज्योति की अखंड स्थापना के लिए तत्कालीन रक्षामंत्री (वर्तमान प्रधानमंत्री) श्री पी.वी. नरसिंहाराव ने पधारकर जम्बूद्वीप परिसर में ही इस ज्ञानज्योति की अपने करकमलों से अखंड स्थापना की। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता राज्य सभा के सांसद श्री जे०के० जैन (कांग्रेस) ने की थी। चतुर्थ पंचकल्याणक १९८७ ६ मार्च १९८७ से ११ मार्च १९८७ तक यह कार्यक्रम संपन्न हुआ। भगवान पार्श्वनाथ एवं भगवान् नेमीनाथ इन दो पद्मासन विशाल प्रतिमाओं का पंचकल्याणक महोत्सव संपन्न हुआ। इस प्रतिष्ठा का नाम भगवान् पार्श्वनाथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव रखा गया। इसमें पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञातमती माताजी के अतिरिक्त आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज एवं उपाध्याय श्री भरतसागर जी महाराज के संघ का सानिध्य प्राप्त हुआ। प्रतिष्ठाचार्य पं० शिखरचंद जैन भिण्ड ने यह कार्यक्रम संपन्न कराया। इसी शुभ अवसर पर ११ मार्च को सुमेरू पर्वत पर स्वर्ण कलशारोहण भी किया गया तथा ८ मार्च को बाल ब्र० श्री मोतीचंद जी की क्षुल्लक दीक्षा संपन्न हुई। दीक्षा समारोह के शुभ अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता संसद सदस्य श्री जे०के० जैन ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में माननीय श्री माधवराव सिंधिया केन्द्रीय रेल मंत्री ने मंच को सुशोभित किया। पंचम पंचकल्याणक एवं प्रथम महामहोत्सव १९९० ३ मई से ७ मई १९९० तक जम्बूद्वीप महामहोत्सव एवं पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह के नाम से संस्थान द्वारा यह पंचकल्याणक कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस पंचकल्याणक में इन्द्रध्वज मंदिर में विराजमान करने हेतु ४५८ जिनप्रतिमाओं का पंचकल्याणक महोत्सव किया गयातथा नूतन कमल मंदिर पर कलशारोहण संपन्न हुआ। इस महामहोत्सव में ४ मई को केन्द्रीय उद्योग मंत्री श्री अजित सिंह का मंगल आगमन हुआ एवं ६ मई १९९० दिन रविवार को उत्तरप्रदेश के महामहिम राज्यपाल श्री बी० सत्यनारायण रेड्डी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। इस कार्यक्रम में पंचकल्याणक के अतिरिक्त महामहोत्सव की एक और प्रमुखता थी वह इस प्रकार थी कि संस्थान द्वारा यह निर्णय लिया गया था कि जम्बूद्वीप का पंचकल्याणक महोत्सव १९९५ में संपन्न हुआ था। उसके बाद प्रत्येक पांच वर्ष में जम्बूद्वीप महामहोत्सव के नाम से एक वृहद् समारोह जम्बूद्वीप स्थल पर किया जायेगा। अतः यह प्रथम महामहोत्सव १९९० में किया गया। आगे आने वाले सन् १९८५ व २००० आदि में द्वितीय, तृतीय महोत्सव भी संपन्न होंगे, ऐसा निर्णय कमेटी द्वारा किया गया है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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