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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ
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निर्माण की प्रगतिः
मध्य धीरे-धीरे ८४ फुट ऊँचे सुदर्शनमेरू का निर्माण प्रारंभ हुआ। इसमें मकराना का गुलाबी संगमरमर लगाया गया। ऊपर तक जाने के लिये अंदर में सीढ़ियां बनाई गईं। एवं सुमेरू के चारों वनों में चार-चार अकृत्रिम चैत्यालय ऐसे सोलह चैत्यालयों में १६ अकृत्रिम प्रतिमायें विराजमान की गईं। यह कार्य लगभग ४ वर्ष में सम्पन्न हुआ। अतः सन् १९७९ में अप्रैल-मई में इन प्रतिमाओं का पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ।
इसके बाद जम्बूद्वीप की नदियाँ, पर्वत, चैत्यालय, देवभवन एवं लवण समुद्र आदि के निर्माण प्रारंभ किये गये जो कि सन् १९८५ में पूरे हुए। अतः इन प्रतिमाओं का पंचकल्याणक अप्रैल-मई १९८५ में सम्पन्न हुआ।
जम्बूद्वीप के साथ ही अन्य निर्माण कार्य भी चलते रहे। जिसमें यात्रियों की सुविधा के लिये कमरे व फ्लेट के निर्माण, साधुओं को ठहराने के लिये रत्नत्रय निलय का निर्माण, तीनमूर्ति मंदिर का निर्माण, भोजनशाला का निर्माण, कार्यालय भवन का निर्माण आदि कार्य सम्पन्न होते रहे।
वर्तमान में हस्तिनापुर संस्थान की भूमि पर जम्बूद्वीप का भव्य अतिशय पूर्ण निर्माण संपन्न हो चुका है। भगवान् महावीर की प्रतिमाजी जो सन् १९७५ में एक छोटे से मंदिर या कमरे में विराजमान की गई थीं उस स्थान पर भव्य कमल मंदिर का निर्माण हो चुका है। यह कमलमंदिर भी जैन समाज में एक अपने आप में अलौकिक है। यात्रियों की सुविधा के लिये लगभग १५० कमरे, २० फ्लेट व एक कोठी का निर्माण संपन्न हो चुका है। पानी की सुविधा के लिये टंकी एवं कुआं के निर्माण भी हो चुके हैं तथा नये निर्माण में वर्तमान में मेडीटेशन टेम्पिल (ध्यान मंदिर) का निर्माण चल रहा है, नये फ्लेटों का निर्माण कार्य चल रहा है। इसके साथ ही संस्थान की भूमि पर मुख्यद्वार मेन गेट एवं इन्द्रध्वज मंदिर का कार्य शीघ्र ही होने वाला है। ये समस्त निर्माण कार्य दिगंबर जैन समाज के प्रत्येक प्रांतों के दर्शनार्थी महानुभावों के उदार सहयोग से संपन्न हुआ है। इंजीनियर आचिंटेक्टः
___ यहाँ पर आने वाले अनेक महानुभाव यह प्रश्न किया करते हैं कि आपके इंजीनियर व आर्चिटेक्ट कौन है? जिनके सहयोग से यहाँ का इतना सुंदर निर्माण कार्य हुआ है। इस संबंध में आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि इस निर्माण के सर्वप्रमुख इंजीनियर तो पूज्य ज्ञानमती माताजी ही हैं। उन्होंने ही जम्बूद्वीप का समस्त नक्शा ग्रंथों के आधार से हम लोगों को बतलाया। जिसमें आवश्यकतानुसार हम इंजीनियर व आचिंटेक्ट से परामर्श व सहयोग लेते रहते हैं।
सुमेरू पर्वत के निर्माण में भारत के ख्याति प्राप्त रुड़की विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष एवं दिल्ली आई.आई.टी. के डायरेक्टर डा० ओ०पी० जैन का सहयोग हमें प्राप्त हुआ। जो कि वर्तमान में रिटायर्ड हो चुके हैं तथा दिल्ली ही रहते हैं। उनके अलावा दिल्ली के स्व० श्री के०सी० जैन इंजीनियर का सहयोग प्राप्त हुआ। बिजली कार्य के लिये नई दिल्ली नगर महापालिका के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर श्री एस०एस० गोयल एवं उनके सुपुत्र श्री अरुण गोयल का सहयोग लिया जाता है। कार्य की देखरेख के लिये मेरठनिवासी श्री के०सी० जैन रिटायर्ड इंजीनियर संस्थान को निशुल्क सेवाये देते हैं। इसी प्रकार जम्बूद्वीप स्थल पर लगाये गये समस्त पत्थर के निर्णय एवं खरीदने में श्री जैन नरेश बंसल-दिल्ली का सहयोग संस्थान की सेवाओं में उल्लेखनीय है। हम इन समस्त सहयोगी इंजीनियर व आचिंटेक्ट के आभारी हैं। वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला द्वारा ग्रंथों का प्रकाशन:
निर्माण कार्य के अलावा ज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ा प्रचार-प्रसार इस संस्थान द्वारा किया जा रहा है। इसके लिये सन् १९७२ में वीर-ज्ञानोदय ग्रंथमाला की स्थापना की गई थी। इस ग्रंथमाला से पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखित ग्रंथों एवं पुस्तकों का प्रकाशन विशेष रूप से किया जाता है। १९७२ से लेकर वर्तमान में १९९२ तक लगभग १३६ ग्रन्थ, पुस्तकें लाखों की संख्या में प्रकाशित हो चुके हैं। बड़े ग्रंथों में
अष्टसहस्री तीन भाग, समयसार, नियमसार, कातंत्र व्याकरण, जैन भारती ज्ञानामृत आदि के प्रकाशन किये गये हैं। पूजन विधानों में इंद्रध्वज मंडल विधान, कल्पद्रुम मंडल विधान, सर्वतोभद्र मंडल विधान, तीनलोक मंडल विधान, त्रैलोक्य मंडल विधान, जम्बूद्वीप मंडल विधान, शांतिनाथमंडल विधान, ऋषिमंडल विधान आदि प्रमुख हैं। कथा साहित्य एवं बाल साहित्य में बाल विकास, जीवनदान, परीक्षा, आटे का मुर्गा, सतीअंजना, भक्ति, भरत का भारत, रोहिणी नाटक आदि अनेक लघु प्रकाशन महत्वपूर्ण रहे हैं। ये सभी ग्रंथ समाज में अत्यंत लोकप्रिय हो चुके हैं। सम्यग्ज्ञान हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रकाशन:
जुलाई १९७४ से सम्यग्ज्ञान हिंदी मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया जिसके प्रथम अंक का विमोचन आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज के करकमलों से दिगंबर जैन लाल मंदिर दिल्ली में १ जुलाई १९७४ वीरशासन जयंति के शुभ दिन किया गया था। यह सम्यग्ज्ञान मासिक पत्रिका १८ वर्षों से लगाकर प्रतिमाह प्रकाशित हो रही है। इस समय इस पत्रिका के परम संरक्षक- आजीवन, संरक्षक-आजीवन, स्थायी सदस्य-आजीवन, त्रैवार्षिक एवं वार्षिक सदस्यों की संख्या लगभग ४५०० हैं।
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