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________________ ६०४] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ सेलम में ज्ञानज्योति का शुभ आगमन हुआ मंगलकारी। सन् चौरासी जनवरी अठारह स्वागत करते नरनारी ॥ पांडीचेरी से थिंडिवनम में विश्वशांति संदेश दिया। इक समवशरण की भाँति सभी प्राणी को हित उपदेश दिया ॥ ४९ ॥ आर्यिका विजयमती माता का सेलम में संघ उपस्थित था। उनके पावन आशीषों से हर जनमानस भी हर्षित था। इस तमिलनाडु में गुरुओं के सानिध्य बहुत कम मिलते हैं। कुछ पुण्य उदय से गणिनी आर्या श्री के दर्शन उन्हें मिले ॥ ५० ॥ मेलचितामूर है तमिलनाडु का एक कलाकृति तीर्थ कहा। भट्टारक लक्ष्मीसेन स्वामि का था मंगल सानिध्य जहाँ ॥ प्रान्तीय तमिल भाषा में ही उपदेश सुनाया जनता को। अपनी भाषा में समझ ज्योति में दरसाई निज श्रद्धा को॥ ५१ ॥ इस तीरथ से चल वंदवासी नामक इक शहर और आया। जहाँ हज्जारों नरनारी ने स्वागत जुलूस भी निकलाया ॥ छब्बीस जनवरी को ज्योती मद्रास नगर में आई थी। श्रीमोहनमलजी चोरडिया ने माला वहाँ बढ़ाई थी॥ ५२ ॥ इस तमिलनाडु के बाद ज्योतिरथ आंध्र प्रान्त में भी आया। हैदराबाद में प्रादेशिक शिक्षामंत्री को बुलवाया ॥ पी. आनंद' गजपति राजू से स्वस्तिक बनवाया था रथ पर। बहुस्वागत सत्कारों के संग प्रान्तीय समापन था यहँ पर ॥ ५३ ॥ सन् उत्रिस सौ चौंसठ में यहाँ माताजी ने चौमास किया। ब्रह्मचारिणी मनोवती बाई की दीक्षा का शुभ कार्य हुआ। बन गई क्षुल्लिका अभयमती निज जीवन सफल बनाया था। श्री ज्ञानमती माताजी ने धार्मिक उत्सव मनवाया था ॥ ५४ ॥ श्री जयचंदजी लोहाड़े मांगीलाल पहाड़े आदि सभी। इस ज्ञानज्योति के स्वागत में मंगल आरति ले खड़े सभी । अम्मा के चातुर्मास संस्मरण खूब सभी ने याद किये। मोतीचंदजी ने वहाँ पहुँच सबके स्वागत स्वीकार किये ॥ ५५ ॥ कर्नाटक केरल तमिलनाडु आंध्रा प्रदेश में हुआ भ्रमण । मानवता के जागरण हेतु मानो आया था समवशरण ।। इस मध्य कार्य बहुतेक हुए नहिं जिन्हें लेखनी लिख पाई। संक्षेप मात्र में ही मैंने यह ज्योती यात्रा दर्शाई ॥ ५६ ॥ इन प्रान्तों में भट्टारक स्वामी गुरु का आशीर्वाद मिला। श्रीसिंह चन्द्र शास्त्रीजी का सक्रिय सहयोग अपार मिला ॥ केन्द्रीय प्रवर्तन समिति ने चउमुखी प्रचार प्रसार किया। बस इसीलिए "चन्दनामती" ज्योती ने कार्य अपार किया ॥ ५७ ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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