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________________ ५६६] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ RA A प्रवर्तन में चार चाँद लगाए। यहाँ के समस्त कार्यक्रम आचार्य श्री धर्मसागरजी के शिष्य क्षुल्लक श्री सिद्धसागरजी के सानिध्य में सम्पन्न हुए। आर्यिका रत्नमतीजी की चिरस्मरणीय दीक्षास्थलीज्ञानज्योति के पदार्पण से सहज ही यहाँ की पूर्व स्मृति जाग्रत हो गई। अजमेर की जनता वचनों से कह-कह कर भी संतुष्ट न हो पा रही थी कि ज्ञानमती माताजी की माँ सरीखी दीक्षा शायद ही किसी की हुई होगी। दीक्षा के प्रत्यक्षदृष्टा सरसेठ भागचंदजी सोनी उस दीक्षा का बखान करते हुए स्वयं भावविह्वल हो कहने लगे कि माँ मोहिनी ने १३ संतानों को जन्म देने के पश्चात् हमारी अजमेर नगरी में पारिवारिक संघर्ष तथा बच्चों के करुण क्रंदन पर विजय प्राप्त कर आर्यिका दीक्षा धारण की है। हम उस घड़ी को कभी नहीं भूल सकते हैं, जब एक बेटा तीन दिन से बेहोश पड़ा था, अन्य पुत्र, पुत्रियाँ, बहुएँ, नाती-पोते, भाई सभी उन्हें चिपक-चिपक कर रो रहे थे, अजमेर में ज्ञानज्योति सभा के मध्य सभाध्यक्ष कैप्टन श्री सरसेठ भागचंद जी सोनी श्री पूनमचंद गंगवाल, पास में खडणे हैं-कर्मठ कार्यकर्ता श्री पदमचंद जी वकील। उनके मुख से मात्र यही शब्द निकल रहे थे-मेरी माँ, मेरी दादी, मेरी नानी, मेरी जीजी की दीक्षा नहीं हो सकती, हम तो इन्हें घर ले जाएँगे। घर वालों की बिना आज्ञा के आचार्य श्री दीक्षा नहीं दे सकते, किन्तु मोहिनी माता बिल्कुल पत्थर की भाँति कठोर बन चुकी थीं, उन्होंने अपने आत्मबल का परिचय देकर सबको रोता-बिलखता छोड़कर निश्चित तिथि पर (मृगशिर कृ. ३, नवम्बर सन् १९७१) दीक्षा धारण कर ली, तब आचार्य श्री धर्मसागरजी ने उन्हें "आर्यिका रत्नमती" नाम से अलंकृत किया। माँ की इस दृढ़ता के संस्कार ज्ञानमती माताजी में होना स्वाभाविक ही है। ज्ञानमूर्ति ज्ञानमती माताजी को प्रदान करने वाली रत्नमती माताजी को सेठ साहब ने ज्ञानज्योति का मूलस्रोत बताया तथा हस्तिनापुर में विराजमान आर्यिकाद्वय को शत-शत नमन किया। राजस्थान भ्रमण के प्रथम चरण का समापन बिजौलिया में२ अगस्त से १४ अगस्त के बीच लगभग ३० नगरों का भ्रमण करती हुई ज्ञानज्योति १५ अगस्त, १९८२ को बिजौलिया (राज.) में पधारी। स्वतंत्रता दिवस पर इस मंगल आयोजन को सम्पन्न करते हुए वहाँ के अजमेर (राज.) में ज्ञानज्योति पर माल्यार्पण करते हुए प्रान्तीय स्वायत्तमंत्री श्रीरामजी गोटे वाला। लोग अति हर्षित थे। यहाँ के उत्साह को लेखनीबद्ध करना भी मुश्किल-सा प्रतीत होता है। सारा दिन जैनियों की दुकानें बन्द रहीं। मध्याह्न में सभा के पश्चात् जुलूस निकाला गया। शोभायात्रा के उद्घाटनकर्ता श्री रामकल्याणजी आकोदिया मुन्शीफ मजिस्ट्रेट थे तथा भारतसिंहजी चौधरी अध्यापक माध्यमिक उच्चतर विद्यालय मुख्य अतिथि थे। पदाधिकारियों ने भी संचालन का भार संभाला४ जून, १९८२ से १ अगस्त तक ज्ञानज्योति का संचालन वाणीभूषण पं. बाबूलाल जमादार ने किया। इसके पश्चात् अस्वस्थता के कारण १ अगस्त को अजमेर से प्रस्थान कर पंडितजी बड़ौत विश्राम हेतु आ गए। अतः २ अगस्त से १५ अगस्त तक ज्योतिभ्रमण का समस्त संचालन ब्र. मोतीचंद जैन महामंत्री तथा श्री धर्मचंदजी मोदी ब्यावर (संयोजक राजस्थान प्रांतीय ज्योति समिति) द्वारा किया गया। ब्यावर सरस्वतीभवन के विद्वान् श्री अरुण कुमार शास्त्री तथा विजयनगर (राज.) के विद्वान् श्री जयकुमार अजमेरा का भी सहयोग प्राप्त हुआ। ज्ञानज्योति के स्वागत के साथ-साथ अनेक स्थानों पर पं. जमादारजी, ब्र. मोतीचंदजी एवं धर्मचंदजी मोदी का भावभीना स्वागत भी हुआ। कई जगह अभिनंदन पत्र भेंट किए गए। अपने ओजस्वी वक्तव्यों से जन-जन को जम्बूद्वीप एवं अहिंसामयी सिद्धान्तों को बतलाकर न जाने कितने भव्य प्राणियों को मांसाहार, मदिरापान, धूम्रपान आदि व्यसनों से मुक्त कराया। यही तो ज्ञानमती माताजी ने ज्योतिभ्रमण का प्रमुख उद्देश्य बनाया था। अतः इस प्रगतिपूर्ण प्रवर्तन से पूज्य माताजी का रोम-रोम पुलकित हो उठता था। जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति के प्रथम चरण का समापन बिजौलिया नगर में किया गया। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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