SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 618
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५२] नेहरू के कर कमलों द्वारा सन् १९४९ में रखी गई थी। पिछले ३३ वर्षों में हस्तिनापुर में बहुत विकास हुआ है। फिर भी अभी विकास की अत्यन्त आवश्यकता है। पं० श्री जवाहरलाल नेहरू के समान ही देश की दृढ़ प्रतिज्ञ कर्मठ एवं विश्व विख्यात प्रधानमंत्री माननीया श्रीमती इंदिरा गांधी जी का सहयोग भी हस्तिनापुर के विकास में एक बड़ी बात है। यह सभी के लिए विशेष गौरव की बात है। इस विशाल कार्य के साथ ही संस्था से पूज्य माताजी द्वारा लिखित ६० पुस्तकें लाखों की संख्या में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा ४० पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं, जिसके माध्यम से आत्मा के साथ लगे हुए इस नश्वर शरीर की रचना का तथा पुण्य और पाप का ज्ञान प्राप्त होता है एवं विषय-वासनाओं से संत्रस्त वर्तमान विश्व को भारत की प्राचीन आध्यात्मिकता से शांति की प्राप्ति हो सकती है। गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ संस्थान द्वारा प्रतिमाह प्रकाशित लोकप्रिय पत्रिका "सम्यग्ज्ञान" संस्थान के उद्देश्यों की पूर्ति में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई है। भारतीय संस्कृति के विकास में प्राचीन भाषाओं संस्कृत, पाली, प्राकृत आदि का भारी योगदान रहा है आज समाज में इन भाषाओं के विद्वानों की कमी होती जा रही है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संस्थान ने संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की है, जिससे इन भाषाओं के पठन-पाठन को अक्षुण्ण रखने में सक्षम अधिकारी विद्वानों का सृजन किया जायेगा। इन सभी कार्यों में पूज्य माताजी के आशीर्वाद के साथ ही समाज एवं शासन का सहयोग समय-समय पर हमें प्राप्त होता रहा है। एतदर्थ हम समाज तथा शासन के बहुत आभारी हैं। इस भूगोल - खगोल के शोध संबंधी महान् कार्य में हम शासन के सहयोग की अपेक्षा रखते हुए शासन से यह अनुरोध करते हैं कि हमें ऐसी शक्ति प्रदान करे कि हम वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के समक्ष भारतीय संस्कृति के इस उपेक्षित अंग को सिद्ध करने में सफल हो सकें। ज्ञानज्योति प्रवर्तन मंच पर ४ जून को ब्र. मोतीचंद जैन द्वारा दिया गया जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति प्रवर्तन का परिचय जम्बूद्वीप का जन-जन में प्रसार करने के लिए जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति प्रवर्तन योजना बनाई गई है। इसके माध्यम से भगवान महावीर के अहिंसामय विश्वधर्म को ग्राम - ग्राम में जन-जन तक पहुँचाया जायेगा और सत्साहित्य के द्वारा जनता में सम्यग्ज्ञान की ज्योति जलाई जायेगी। आज का मानव सुख सामग्री जुटाने के लिए इतना प्रयत्नशील हो रहा है कि वह अपनी स्वाभाविक शांति खो बैठा है उसके लिए मनुष्य चोरबाजारी, अनैतिकता, धोखेबाजी आदि दुष्कर्मों को करने में भी विचारहीन होता जा रहा है। वास्तव में सुख तो शांति एवं संतोष में है, ऐसी ज्ञान की ज्योति हर दिल में जगाना है। लोगों को बताना है कि व्यक्ति के अपने ही अच्छे एवं बुरे विचार अपनी जीवनधारा का निर्माण करने वाले होते हैं। अगर हम अपने को सुखी रखना चाहते हैं तो किसी को दुःखी न करें। साथ ही हर व्यक्ति धन संग्रह की प्रवृत्ति छोड़कर एवं धर्म के हित में प्राण न्यौछावर कर दे, यही भारत की प्राचीन परंपरा रही है। महर्षियों ने कहा है कि "परस्परोपग्रहो जीवानाम्" अर्थात् मनुष्य एक दूसरे का उपकारक है। अतः अपने संकीर्ण विचारों एवं दुराग्रहों को छोड़कर आपस में भाईचारे का व्यवहार रखें, इसी में धर्म, समाज एवं राष्ट्र की उन्नति निहित है। इन्हीं सद्भावनाओं के प्रचार- प्रसार, राष्ट्रीय एकता के विकास एवं प्राचीनतम भूगोल का दिग्दर्शन कराने हेतु जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का प्रवर्तन किया जा रहा है। साहित्य समाज का दर्पण है। बिना धार्मिक साहित्य के प्राचीन संस्कृति का ज्ञान संभव नहीं है। इसलिए इस “ज्योति” के भ्रमण में सरल अनेक चित्रों से सुसज्जित ज्ञानज्योति रथ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy