SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 602
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३८] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ विधानों की नूतन रचना कहाँ तक गिनाऊँ मैं जगत तो स्वयं देख रहा है देख क्या? अपनी सहस्रों आखों से निहार रहा है तेरी कृतियाँ भी तो अनमोल हैं शताब्दी में बेजोड़ हैं मैं सोचती हूँ कि क्या तू ब्राह्मी माता है या चन्दनबाला है। हाँ, तू शांतिसिन्धु की परम्परा में चारित्रचक्रवर्ती की चलती फिरती पाठशाला है चार जून उन्नीस सौ ब्यासी को, प्रधानमंत्री इन्दिरा जी ने ज्ञानज्योति रथ चलाया दिल्ली में लाल किले पर ज्योति उद्घाटन बेला में ज्ञानमती माताजी का स्नेहिल आशीर्वाद पाया इसीलिए देश भर में ज्ञानज्योति ने अपना अलख जगाया राजनीति और धर्मनीति की दो महान विभूतियों का यह अपूर्व मिलन था व्यक्तिगत वार्ता का सुन्दर जो क्षण था उसके बाद इकतीस अक्टूबर उन्नीस सौ ब्यासी को राजीव गांधी का क्रम आया जम्बूद्वीप सेमिनार का उद्घाटन किया और तपस्विनी माता का शुभाशीष पाया फिर तो राजनेता आते ही रहे जगह-जगह ज्ञान की ज्योति जलाते रहे प्रत्येक प्रान्त में शहर और गांव में मंत्रियों का सिलसिला जारी रहा ज्योति रथ के दर्शन का उत्साह भारी रहा एक हजार पैंतालिस दिन के बाद वह ज्योति अट्ठाइस अप्रैल उन्नीस सौ पचासी को हस्तिनापुर में आई तब केन्द्रीय रक्षामंत्री नरसिंहाराव ने अखंड ज्योति जलाई वह जल रही है जलती रहेगी जम्बूद्वीप और ज्ञानमती माता का नाम अमर करती रहेगी Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy