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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
अब वीरमती से "ज्ञानमती", गुरुवर ने नाम उच्चार दिया ॥ ३ ॥ बिजली-सी फैल गई कीरत, हो गई धन्य जीवन-बेला; अब डगर-डगर पर दर्शन को, भक्तों का लगा मिले मेला । तब ज्ञानमती जी संघ बना, निकली भव पार लगाने को; तब दुराचार को हटा, सदा को सदाचार चमकाने को ॥ ६४ ॥
मंगल-विहार
प्रिय सम्वत दो हजार दस से, अब तक जो चातुर्मास किये; वह भू अब तक गाया करती, उन पावन दिन की याद किये। पर जो वंचित हैं नगर डगर, हर मन कहता वह सावन हो; माँ ज्ञानमती के पग द्वारा, यह सारी दुनिया पावन हो ॥ ६५ ॥ पर जिनको यह सौभाग्य मिला, लो चलो तुम्हें दर्शाता हूँ; उन नगरों के, उन गाँवों के, अब पावन नाम बताता हूँ। है सबसे प्रथम टिकैतनगर, जिसका माता से नाता है; जयपुर में अभी जहाँ का जन, जयकारा रोज लगाता है ।। ६६ ।। म्हसवड़ महाराष्ट्र तथा ब्यावर, सपने में जिन्हें ने भूलेगा; अजमेर, खानिया, जब तक युग, युग-युग गौरव कर फूलेगा। सीकर, सुजानगढ़, कलकत्ता, बरसी जिनमत की धारा है; कहता प्रतापगढ़ माता का, सचमुच प्रताप ही न्यारा है ॥ १७ ॥ लाडनूं, हैदराबाद बन्धु, सोलापुर पुनः बुलाता है; प्रिय श्रवणबेलगोला जिनकी, वाणी सुनने अकुलाता है। जिस-जिस तीरथ में जा करके, माता ने धर्म प्रचार किया; अब लगे हाथ वह भी सुन लो, वंदन कर जग उद्धार किया ॥ ६८॥ श्री कुन्थल गिरि, गिरनार क्षेत्र, जा सिद्ध क्षेत्र सम्मेदशिखर; श्री खंडगिरि, श्री उदयगिरि, की जाकर वंदी डगर-डगर । महावीर मूडवद्री वरांग, तब "सरस" कारकल जा भाई; श्री क्षेत्र कुन्दकुन्दाद्रि में, जिन ध्वजा कुन्द बन फहराई ।। ६९ ॥ हुम्मच, हुबली, बीजापुर जी, रखता जिनके प्रति ममता है; गजपंथा वन्दा मुक्तागिर, जो मुक्त सभी को करता है। बड़वानी पावागिरि ऊन, मांगीतुंगी को वन्दा है; जा सिद्ध सिद्धवरकूट क्षेत्र, काटे कर्मों का फन्दा है ॥ ७० ॥ कर रहा सनावद रोज याद कब ज्ञानमती माता आयें ; हर गली बोलती घड़ी-घड़ी, किस घड़ी दिव्य दर्शन पायें । इस तरह क्षेत्र में जा करके, अब तक जो चातुर्मास किये; वह सुने, सुने अब, माता ने, कैसे-कैसे उपकार किये ? ॥ ७१ ॥
उपकार -
माँ- ज्ञानमती ने जो विराग का पावन बाग लगाया है; जिसकी हर शाखा पर त्याग, तप का प्रसून लहराया है। लो इसी पृष्ठ के छन्दों में, मैं उसकी सैर कराता हूँ; हैं कैसे-कैसे फूल लगे, मैं उनके नाम गिनाता हूँ ॥ ७२ ॥
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