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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [२४३ तुमको मैं प्रणाम करूँ - श्रीमती कपूरी देवी, महमूदाबाद नारी शक्ति की अद्भुत देवी, तुमको मैं प्रणाम करूँ । ध्यानमग्न हो माँ की मूरत. मन-मंदिर में चारों याम धरूँ ॥ किन शब्दों के चक्रव्यूह की, मैं रचना कर सकती हूँ। कैसे बाँध सकूँ गुण सागर को, नहीं वाचना कर सकती हूँ । अबलाओं की सबल प्रेरणा, किससे मैं उपमान करूँ । नारी शक्ति की अद्भुत देवी, तुमको मैं प्रणाम करूँ ॥ नवरत्नों की भण्डार आपने, अपना जीवन सफल किया । दे दिया विश्व को अनुपम अमत, जगति का कल्याण किया ।। सामर्थ्य नहीं है जिह्वाओं में, किस मुख से गुणगान करूँ । नारी शक्ति की अद्भुत देवी, तुझको मैं प्रणाम करूँ ॥ तुम देवि नहीं परमेश्वरी हो, अक्षय ज्ञान का कोष भरा है। तुम से ही शोभित नारी जीवन, उच्चाकाश और धरा है । इस दूषित जीवन को मैं भी, उज्ज्व ल और ललाम करूँ । नारी शक्ति की अद्भुत देवी, तुमको मैं प्रणाम करूँ ॥ अभिनन्दन है विश्व पटल पर, कितना हर्ष समाया है । लाखों वर्षों का जीवन हो, "कपूरी" का भाव यह आया है । मिले मुझे भी ऐसी शक्ति, तजकर मोह निज धाम चलूँ । नारी जीवन की अद्भुत देवी, तुमको मैं प्रणाम करूँ ॥ भजन - अकलंक कुमार जैन, टिकैतनगर माता की महिमा अपरंपार है तेरे चरणों में नमस्कार है ॥ टेक ॥ तेरे दर्शन को अँखियाँ तरसी हैं मन मंदिर में तो मूरत तेरी है ॥ भक्तों की ये ही पुकार है । तेरे चरणों में नमस्कार है ॥ माता की महिमा अपरंपार है। तेरी ही जय-जयकार है ॥ ज्ञानज्योति जलवाया था तुमने, जम्बूद्वीप बनवाया था तुमने । कमल मंदिर का नवनिर्माण है, ह्रीं को मेरा नमस्कार है ॥ माता की ... Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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