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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
अष्टसहस्री आदि ग्रन्थ रच, माँ ने कमाल किया है । धन्य सैकड़ों ग्रन्थों को रच, धर्म उपकार किया है । जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति रथ से, जग को ज्ञान मिला है !
भूले-भटके बालक को यहाँ, सम्यग्ज्ञान खिला है । मंगलमयी माँ ज्ञानमती को, भक्तिभाव अर्चित चंदन । आत्मतत्त्व अन्वेषी माँ तुम, शत-शत वन्दन अभिनंदन ॥
भूले-भटके बालक जन को, सम्यग्ज्ञान मिला है । वीर सागर विद्यापीठ से, वीतराग का द्वार खुला है । त्रिलोक शोध संस्थान आदि से, तीन लोक का सार मिला है। सत्य, अहिंसा, अपरिग्रहवाद का. यहाँ पर जगकोपाठ मिला है।
यहाँ की पावन रज कण भूमि में, झरते स्याद्वाद के झरने । पूज्य आर्यिका ज्ञानमती तुम. लगीं काटने कर्म बन्धन । परम पूज्य श्री ज्ञानमती को, नत “फणीश" का शत वंदन अभिनन्दन।
ज्ञानमती माताजी तुमको मेरा बारंबार प्रणाम
- अनूपचंद्र न्यायतीर्थ, जयपुर
(१) वंदनीय अभिनन्दनीय हे !
पूज्य ! आर्यिका रत्न महान । किया हस्तिनापुर स्थापित,
जैन त्रिलोक शोध संस्थान ॥ (२)
(३) हे सिद्धान्त ज्ञान वाचस्पति,
सत साहित्य प्रणेता युग की, न्याय प्रभाकर ! विदुषी रत्न ।
किये प्रकाशित ग्रन्थ अनेक । जम्बूद्वीप प्रेरिका गणिनी,
पूजा, कथा, बाल उपयोगी, सफल तुम्हारे सभी प्रयत्न ॥
जैन मान्यता की रख टेक ॥
जैन न्याय का जो सर्वोपरि, अष्टसहस्री ग्रंथ विशाल। हिन्दी टीका करके तुमने, किया राष्ट्र का उन्नत-भाल॥
हिन्दी औ संस्कृत भाषा के, रचे बहुत से मौलिक ग्रन्थ । कितनों का पद्यानुवाद कर, दिखा दिया है सच्चा पंथ ॥
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