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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [२०९ अपूर्व त्याग करोनी बने, तुम्ही पहिली बाळसती तव पदी येतां झाले, अनेक बालसती ॥ ४ ॥ माते जयश्री .... पारसमणी सम तुम्ही, पारस केले किती सुवर्ण किती एक झाले, त्यास नाही गणती ॥ ५ ॥ माते जयश्री .... मात पिता छोटेलाल मोहिनी, हनिही सजले त्यांच्या सदनी जन्मुनी, त्यांसी धन्य केले ॥ ६ ॥ माते जयश्री . . . . . जंबूद्वीप साकार ही करण्या, तुमची असे प्रेरणा ज्ञानज्योत लावियली, आत्मज्योत प्रकटण्या ॥ ७॥ माते जयश्री .... सरस्वतीची प्रतिमूर्ती तुम्ही, चरणी शरण तुमच्या ज्ञान सिंधू तुम्ही असतां, मम तष्णा शमवा ॥ ८ ॥ माते जयश्री . . . . भक्ती भावे तुम्हास स्मरतां, "शोभना" लीन झाली तव गुण गांतां गांतां, देहभान हरपली ॥ ९॥ माते जयश्री .... चारित्रशिरोमणि श्री ज्ञानमती अष्टक -श्री आर्यिका अभयमती वसंततिलका छंद श्री ज्ञानमति गुरू है जग से निराली । रक्षा करो लह सुबुद्धि सुविश्व प्यारी ॥ जो दिव्य ज्योति तुम भू पर है प्रकाशा। अज्ञान प्राणिनि मिली सुख की दिलाशा ॥१॥ है धन्य-धन्य शुभ ग्राम टिकैतनगरी । छोटेसुलाल पितु माता मोहिनीजी ॥ हो पुत्रि जन्म शुभ नाम धरा सुमैना । ले बालपन्य सुविराग बने सुहाना ॥ २ ॥ संसार खार लख सर्व कुटुंब छोड़ा । श्री "आर्यवेष" धर आतम प्रीति जोड़ा। जो केशलोंच कर जैन सती कहावे । निर्दोष शुद्ध तप को कर स्वर्ग जावे ॥ ३ ॥ ज्यों सूर्य ताप लख व्याकुल जीव सारे। संताप हारि जल चंदन चन्द्र प्यारे ॥ त्यों आप ज्ञान बल से तम को नशाया । चन्दा समान कर शीतल विश्व छाया ॥ ४ ॥ श्री हस्तिनागपुर में चउमासकीना । आश्चर्य कार्य करके निज आत्म लीना ॥ श्री क्षेत्र उन्नति गुरू करके दिखाना । जंबूसुद्वीप बन पर्वत शिष्य नाना ॥ ५ ॥ सारे प्रदेश में आप विहार कीना । कर्नाटकादि सबमें उपदेश दीना ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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