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अपनी दैनिक क्रियाओं में लीन माताजी।
लेखन करती हुई।
गुप्तताना बन
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आहार से पूर्व शुद्धि करता हुई।
१० सितम्बर, १९९२ को प्रवचन करती हुई।
जम्बूद्वीप के हिमवन पर्वत पर माला फेरती हुई।
जम्बूद्वीप के नील पर्वत पर स्वाध्याय करती हुई।
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