________________
गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
[१७५
आध्यात्मिक उज्ज्वलता की प्रतीक
- कमलचंद जैन, सी०सी० कालोनी, दिल्ली
भूगर्भ में छिपी अतुल सम्पत्ति को पाकर अन्वेषक को जिस प्रकार महान् आनन्द होता है उसी प्रकार का आनन्द पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी में छिपे गुणों को प्रकट करने हेतु इस अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाशन योजना को सुनकर मुझे प्राप्त हो रहा है।
पूज्य माताजी सरीखे महान् व्यक्तित्व के संसर्ग में आने वाला प्रत्येक मानव अज्ञान और मिथ्यात्व के अन्धेरे से निकलकर आध्यात्मिक उज्ज्वलता की ओर सहज बढ़ने लग जाता है। उनकी सौम्य मुखाकृति और तप तेज का प्रभाव अनायास ही भक्तों को आकर्षित कर लेता है।
मैं भी उनका एक भक्त होने के नाते उनके प्रति कुछ लिखने को आतुर हुआ हूँ, किन्तु मेरा यह प्रयास जल में चन्द्रबिम्ब को देखने जैसा बाल प्रयास ही मानना पड़ेगा। कहाँ माताजी जैसी अद्वितीय प्रतिभा की जीवन्त मूर्ति और कहाँ मुझ जैसा अज्ञानी संसारी प्राणी। हाँ, उनका सानिध्य मुझे अनेक बार प्राप्त करने का अवसर मिला है। मेरा पूरा परिवार माताजी का परम भक्त है।
पूज्य माताजी का जीवन चरित्र विशाल समुद्र के समान है। चाहे उनका त्यागी जीवन देखो या साहित्यिक क्षेत्र । ये तो गृहस्थावस्था से ही महान् विद्वान् थीं। एक बार सरधना में जब मैं उनके दर्शनार्थ गया तो उनकी एक नई कृति “समयसार" देखने को मिली, जिसके प्रकाशन की बात चल रही थी। मैंने भी उसमें पत्रम् पुष्पम् का आर्थिक सहयोग दिया। इस प्रकार उनकी अनेक कृतियाँ उनके नाम को अमर कर रही हैं।
____ मैं अपने परिवार की ओर से पूज्य माताजी के दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन की मंगलकामना करता हुआ उनके पावन चरणों में विनयांजलि समर्पित करता हूँ।
"विश्व का कल्याण होगा"
- राय देवेन्द्र प्रसाद जैन, गोरखपुर
मैं पूज्य माताजी के दर्शन करने आज से बीस वर्ष पूर्व गया था। उस समय जम्बूद्वीप बनाने की बात माताजी ने मॉडल बनाकर प्रारम्भ की थी। समाज में विभिन्न प्रकार के लोगों ने इसका विरोध किया, पर माताजी ने जिस दृढ़ता, सूझ-बूझ तथा लगन से ऐसे अभूतपूर्व निर्माण को पूरा किया, वह अनुकरणीय है। माताजी के ज्ञान तथा मानव सेवा से विश्व का कल्याण होगा। यह हमारा अहोभाग्य है कि ऐसी विदुषी आर्यिका हमारे बीच हैं। वास्तव में समाज उनका अभिवंदन करके स्वयं अभिवन्दित हो रहा है।
"अपूर्व क्रान्ति का सूत्रपात किया है"
- सुबोध कुमार जैन, आरा [बिहार]
पूज्या आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी तथा हस्तिनापुर के त्रिलोक शोध संस्थान के दर्शन के लिए पिछले वर्ष मैं शोध संस्थान में गया था।
यद्यपि पूज्या माताजी के दर्शन नहीं हुए; क्योंकि वे हस्तिनापुर से बाहर गई हुई थीं, परन्तु उनकी अमर कीर्ति जम्बूद्वीप के फिर से दर्शन कर हम कृतार्थ हो गये। जिस प्रकार (हमारी पूज्या दादीजी) आर्यिका पं० चन्दा माँ श्री ने आरा में श्री जैन बाला विश्राम जैसी भारत विख्यात शिक्षा संस्था का निर्माण करवाकर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अमरत्व प्राप्त किया, उसी प्रकार पूज्या ज्ञानमती माताजी ने हस्तिनापुर में त्रिलोक शोध संस्थान की स्थापना कर जैन भूगोल ही नहीं, वरन् त्रिलोक के विषय में जो शास्त्रोक्त सूचनाएँ हैं, उनके विषय म शोध का अत्यन्त कठिन और वैज्ञानिक कार्य आरम्भ करके शिक्षा के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व क्रान्ति का सूत्रपात किया है।
हमारी शुभकामना है कि पूज्या माताजी शतायु हों और स्वस्थ रहें, ताकि उनके निर्देश में त्रिलोक शोध संस्थान महत्त्वपूर्ण कार्य कर सके।
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org