SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [१५७ महान् एवं पवित्र आत्मा - हुलासचन्द जैन [सेठी] गौहाटी १०८ श्री विमल सागरजी महाराज जब सीतापुर आये तो उन्होंने मुझे प्रेरणा दी कि शुद्धजल की सौगन्ध लो। मेरी आदत है कि बिना आजमाये या सहन शक्ति के बिना नियम-व्रत नहीं लेना चाहिये। इसीलिये सात दिनों का नियम लिया। उसके बाद दिल्ली में ज्ञानमती माताजी का एवं रत्नमती माताजी का आहार हो रहा था, तब उनकी बहन ने आहार देने की प्रेरणा दी। उस समय तक मैं नियम में पक्का हो गया था और ज्यों ही मैं पू० माताजी श्री ज्ञानमतीजी के आहार देने के लिए तैयार हुआ, उन्होंने इशारे से कहा कि पहले रत्नमती माताजी को दो, तब मैंने सर्वप्रथम उनकी आज्ञा का पालन करते हुए आर्यिका रत्नमतीजी को सर्वप्रथम आहार दिया। उसी दिन उसके कुछ समय बाद माता ज्ञानमती को अन्तराय आ गया और उनको आहार नहीं दे सका। फिर बाद में उनको आहार दिया। यह घटना जनवरी १९८० की है। सचमुच वह दिन बड़ा ही पवित्र था। मैं ज्ञानमती माताजी का चिर ऋणी रहूँगा और भगवान महावीर से प्रार्थना करता हूँ कि उनका रत्नत्रय कुशल रहे तथा वह स्वस्थ रहकर जैन धर्म की पताका फहराती रहें। पुनः इन्होंने जो हस्तिनापुर में कार्य किया वह इतिहास में अमर रहेगा। ऐसे महान् कार्य को बड़ी आत्मा ही कर सकती है। मैं पूज्य १०५ ज्ञानमती माताजी को बार-बार वन्दना करता हूँ। सरस्वती की प्रतिमूर्ति - तारादेवी कासलीवाल, जयपुर पूज्या गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी देश की वरिष्ठ आर्यिका माताजी हैं। वे सिद्धान्त ग्रन्थों की पारगामी विदुषी हैं तथा अपनी लेखनी द्वारा अब तक सैकड़ों ग्रन्थों की रचना कर चुकी हैं। नारी जगत् को ही नहीं, अपितु समस्त जैन समाज को ऐसी सरस्वती की प्रतिमूर्ति आर्यिका माताजी पर गर्व है। तपस्या एवं ज्ञान के क्षेत्र में नारी जाति कितना आगे बढ़ सकती है आप इसका साक्षात् उदाहरण हैं। मुझे भी सन् १९८५ में उनके दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ था तथा उनके प्रवचन से अपार शांति प्राप्त हुई थी। पूज्या माताजी का अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई। अन्त में मैं आपके चरणों में अपनी विनयाञ्जलि समर्पित करती हूँ। नारी जाति की शोभा - शशिकला जैन, महावीर नगर, जयपुर पूज्या आर्यिका ज्ञानमती माताजी नारी जाति की शोभा हैं। उन्होंने देश एवं समाज में साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं साधना सभी क्षेत्रों में नारी जाति का गौरव बढ़ाया है। वे सूझ-बूझ एवं आत्म-गौरव की प्रतीक हैं। इनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित साहित्य कालातीत है और युगों-युगों तक जैन शासन का मस्तक ऊँचा करता रहेगा। जब मुझे मालूम पड़ा कि उनका अभिवन्दन-ग्रन्थ निकलने वाला है तो मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हुई। मैं उनके चरणों में अपनी विनयाञ्जलि प्रस्तुत करती हूँ। आर्यिका माताजी युगों-युगों तक स्मरण की जाती रहें यही मेरी आत्म-भावना है। शान्ति की मेघदूती : माताजी - कंवरीलाल तेजराज बोहरा, आनन्दपुर कालू [राज०] आज जब सारा विश्व कठिन परिस्थितियों-यातनाओं की ज्वालाओं में झुलस रहा है, ऐसे समय में माताजी ने शान्ति की मेघदूत बनकर धर्मप्रभावना की है। आपके (माताजी) सानिध्य-मार्गदर्शन में हस्तिनापुर में जो जम्बूद्वीप की रचना हुई है वह दर्शनीय एवं वंदनीय है। यह भारत में नही, वरन् Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy