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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
अपनी धुन की पक्की
त्रिलोकचन्द कोठारी, कोटा
सिद्धान्त संरक्षिणी सभा भिण्डर में पंचकल्याणक के अवसर पर आचार्य धर्मसागर महाराज के सानिध्य में पूरे भारत में शिक्षण-प्रशिक्षण शिविरों के आयोजन का संचालन करने के लिए मुझे भारतवर्ष का शिविर संयोजक नियुक्त किया गया था।
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मैंने ज्ञानमती माताजी से निवेदन किया कि पहला शिविर हस्तिनापुर में लगाइये, आप उसके लिए शिक्षकों प्रशिक्षकों का मार्ग-दर्शन करें। उन्होंने यह बात सहर्ष स्वीकार करते हुए एक ऐसी पुस्तक प्रवचन निर्देशिका तैयार कर दी, जिससे पहला शिविर पं० मोतीलाल कोठारी के कुलपतित्व में हस्तिनापुर में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ और उसके बाद तो सारे देश में शिविरों की सरिता बहने लगी।
उस दिन से अब तक पिछले १०-१५ वर्षों से मेरा पूज्य ज्ञानमती माताजी से बराबर सम्पर्क रहा है और मैंने यह देखा है कि माताजी अपनी धुन की इतनी पक्की हैं, जो हर विषय को गहराई से अध्ययन करके ही कार्य का संचालन कराती है।
हमारे परिवार के हर एक सदस्य को उनसे प्रेरणा मिली है, कितनी भी कठिन परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होतीं। उनके द्वारा लिखा गया साहित्य केवल गूढ तत्त्वों पर ही आधारित नहीं होता, वे सामान्य जन को सहज सरल रूप से ग्रहण करने लायक बड़े ही लालित्यपूर्ण सरस साहित्य का निर्माण करने में सदैव संलग्न है, जम्बूद्वीप की रचना करके उन्होंने अपना नाम अमर कर लिया है, किसी भी महिला के द्वारा इतने जैन प्रन्थों का अनुवाद व प्रकाशन कराना इस युग में आश्चर्यजनक घटना है।
मैं अपने और अपने समस्त परिवार की ओर से उनके स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की मंगलकामना करता हूँ एवं उनके द्वारा किये गये कार्यों की अत्यधिक सराहना करते हुए यह आशा करता हूँ कि भविष्य में भी दीर्घकाल तक उनके द्वारा समाज का उपकार होता रहेगा ।
मैं कभी भूल नहीं सकता - आर्यिका ज्ञानमति माताजी को
- मांगीलाल पहाड़े, हैदराबाद
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श्री दिगम्बर जैन आम्नाय में भारतीय संस्कृति के विकास में आचार्यों की परम्परा के साथ जैन इतिहास में भगवान् महावार की प्रथम गणिनी आर्यिका श्री चंदनबाला आर्यिका सीता आदि माताओं का नाम उल्लेखनीय है, उसी प्रकार वर्तमान युग बीसवीं सदी में आज भी जैनागम की अक्षुण्ण सेवा परम पूज्या १०५ श्री आर्यिका ज्ञानमती माताजी ने अनेकों ग्रंथों को सरल, सुबोध शैली में और संस्कृत, प्राकृत भाषा से हिन्दी भाषा एवं काव्य रूप में संस्करण प्रकाशित किये है।
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माताजी ने सम्पूर्ण भारत की पदयात्रा कर दिगम्बर जैन समाज को उन्नति के मार्ग पर आरोहित किया है उसमें आंध्र प्रदेश की वसुधा श्री कुंदकुंदाचार्य की मातृजन्मभूमि भाग्य नगरी, हैदराबाद नगरी में सन् १९६३-६४ में ५७ मण्डल विधान सहित त्रैलोक्य मण्डल, सिद्धचक्र मण्डल विधान, विश्व शांति हेतु यज्ञ महोत्सव, चातुर्मास समय में श्री दिगम्बर जैन समाज के तत्वावधान में माताश्री के शुभाशीर्वाद से, परम सान्निध्य और निर्देशन में सम्पन्न हुए, जिसे आज भी मैं कभी भूल नहीं सकता कि इस भाग्य नगरी का नाम सार्थक दिगम्बर साधु साध्वी से ही हुआ है।
स्वर्णाक्षरों में रहेगा, अंकित नाम तुम्हारा
सुकुमारचन्द्र जैन, मेरठ प्रधानमंत्री दि० जैन प्राचीन मंदिर, हस्तिनापुर
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परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का सन् १९७४ में ऐतिहासिक नगर हस्तिनापुर में पधारना निश्चय ही एक ऐतिहासिक घटना थी। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं तभी से पूज्य माताजी के सम्पर्क में रहा हूँ।
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