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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ यथा नाम तथा गुण
___ मनोज कुमार सड़करी
__ श्री वर्णी भवन मोराजी, सागर आदरणीय पंडित डॉ. दयाचंद साहित्याचार्य जी हम सब विद्यार्थियों के गुरु, दया से ओत प्रोत, दया के सागर "यथा नाम तथा गुण" को सार्थक करने वाले, परिश्रमशील कर्तव्यनिष्ठ, सादा वेशभूषा, धोती कुर्ता, सिर पर टोपी और चेहरे पर सदा मुस्कान रखने वाले।
विद्यार्थी को विद्या अध्ययन बड़ी लगन से कराते थे लेकिन जब उद्दण्डी छात्रों को दण्ड देते देते दया से भर जाते और मन में पश्चाताप करते हुए पूछ लेते, कि जोर से तो नहीं लग गया बेंत । ऐसी करूणा, ममतामयी भावनाओं को देखकर सभी छात्र शर्म से मस्तष्क हो जाते थे और अपनी गल्तियाँ समझ कर माफी मांग, पुन: अपने कार्य में लग जाते थे।
विद्यार्थी को अध्ययन करते देखकर बड़े प्रसन्न होते थे और जीवन के अंतिम समय तक नि:शुल्क सेवाएँ विद्यालय को देते रहे ।
समय समय पर विद्यार्थियों को पढ़ने के नुको बताते थे - 1. प्रात: / ब्रह्ममुहूर्त में सोकर उठना । उठते ही मिलकर ईश प्रार्थना करना । गुरुओं को प्रणाम करना । 2. समय पर शाला जाना, विद्या अध्ययन करके जग में नाम कमाना । गुरु की महिमा बढ़ाना । 3. भोजन के पश्चात् न खेलो, न पढ़ो, 10 मिनट विश्राम करो। 4. शाम को पुस्तकालय जाओ, पत्रिकाएँ, समाचार पत्र पढ़ो। जिसमें सम सामयिक ज्ञान बढ़े। 5. शाम के समय सभी मिलकर खेलो, जिससे शारीरिक निरोगता प्राप्त कर सको।ऐसी शिक्षाएँ गुरुवर हम
लागा को अपना छात्र समझकर देते थे।
आदरांजलि
श्रीमती विमला जैन
शास्त्री वार्ड, सागर (म.प्र.) स्व. पू. डॉ. दयाचंद जी “साहित्याचार्य' पू. वर्णी जी के शुभाशीष प्राप्त आदर्श सरस्वती पुत्र थे। श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय के वे जीवन पर्यन्त हितैषी अध्यापक, प्राध्यापक तथा सफल प्राचार्य रहे । वे प्राचीन परम्परागत शैली के अविस्मरणीय विद्वान थे। मुझे यह भलीभांति स्मरण है। जब वे मेरे नवीन गृह उद्यापन हेतु एक प्रतिष्ठाचार्य के रूप में आये थे। यह वर्ष 24 जुलाई 1974 का प्रसंग है । उनका उचित सम्मान उनके ही शिष्य पं. शिखर चंद्र जी साहित्याचार्य ने किया था। मैंने सहभागी बनकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। उनकी समुद्र सम गंभीरता मुझे आज भी स्मरण में है। उनकी सबसे छोटी सुपुत्री ब्र. किरण दीदी ने छाया बनकर उनकी जो मरण पर्यन्त सेवा.की वह आज की पुत्रियों के लिए आदर्श सीख है मैं आत्मीय आदर के साथ उनके दिवंगत चरणों में अपनी विनयांजलि सेवार्पित कर गौरवान्वित हूँ।
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