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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ इन क्रियाओं से संस्कारित जीवन मनुष्य को इन्द्र पद तक पहुँचा देता है। गर्भान्वय की शेष सत्रह क्रियाएँ इन्द्र के सुख भोगने के बाद वह जीवात्मा पुन: उत्तम क्षेत्र उत्तम कुल में जन्म लेकर तीर्थंकर पद पाता है इन क्रियाओं का प्रत्यक्ष रूप से इस भव से कोई संबंध नहीं, इन्द्र पद के वाद पुन: दूसरे भव से इन क्रियाओं को क्रियान्वयन करना होता है । अत: इन सत्रह क्रियाओं के केवल नाम यहाँ दिये जा रहे हैं।
(37) इन्द्र त्याग, (38) अवतार, (38) हिरण्योत्कृष्ट जन्यता , (39)मन्दरेन्द्राभिषेक, (41) गुरुपूजोपलम्भन, (42) यौवराज, (43) स्वराज्य, (44) चक्रलाभ, (45) दिग्विजय, (46) चक्राभिषेक, (47) साम्राज्य, (48)निष्क्रान्ति (49) योगसन्यास, (50) आर्हन्त्य, (51) तद्विहार (52) योगत्याग, (53) अग्रनिवृत्ति
इस तरह गर्भान्वय क्रियाएँ पूर्ण हुई इन क्रियाओं के विवेचन से जीवन को कितना और कहाँ - कहाँ संस्कारित करना पड़ता है तब यह आत्मा मोक्ष को प्राप्त होती है।
दीक्षान्वय क्रियाएँ - गर्भान्वय क्रियाओं के बाद दीक्षान्वय क्रियाओं को स्पष्ट करते हैं। ये क्रियाएँ 48 होती है जिनके नाम इस प्रकार है -
(1) अवतार, (2)व्रतलाभ, (3) स्थान लाभ, (4) गणग्रह, (5) पूजाराध्य, (6)पुण्ययज्ञ, (7) ब्रह्मचर्या, (8) उपयोगिता। शेष 50 क्रियाएँ गर्भान्वय क्रियाओं के समान उपनीति नाम की चौदहवीं क्रिया से तिरेपनवीं निर्वाण क्रिया तक यथावत है। कन्वय क्रियाएँ -
___(1) सज्जाति, (2) सद्गृहित्व, (3) पारिव्राज्य, (4) सुरेन्द्रता, (5) साम्राज्य, (6) परमार्हन्त्य, (7) परम निर्वाण
ये सातों स्थान तीनों लोकों में उत्कृष्ट माने गये हैं। इन सातों का अर्थ शब्दों के अनुसार ही समझना चाहिए। विवाह के समय जो सात भांवरे (प्रदिक्षणा) वर वधु करते है वह इन सात परम स्थानों का ही प्रतीक है। छ: फेरे में कन्या आगे हुआ करती है। और सातवें फेरे में वर आगे हुआ करता है, इसका बड़ा गूढ रहस्य है कि ऐसा क्यों होता है। जयोदय महाकाव्य में जयकुमार और सुलोचना के विवाह के प्रकरण में महाकवि ब्र. भूरामल जी (बाद में आचार्य ज्ञानसागर जी) ने अपना मौलिक चिंतन दिया है कि ऐसा इसलिए होता है कि इन सात परम स्थानों में सातवाँ परम निर्वाण (मोक्ष) पद की प्राप्ति का साक्षात अधिकार उसी भव से पुरुष को ही है स्त्री को नहीं। छ: स्थान तो स्त्री और पुरुष दोनों को प्राप्त हो सकते हैं परन्तु सातवाँ स्थान पुरुष को प्राप्त होता है इससे वर आगे और कन्या पीछे होती है।
इस तरह उपरोक्त क्रियाओं से अपने जीवन को संस्कारित करके परम निर्वाण पद की प्राप्ति करने का प्रयास हम स्वयं करें और सभी करें बस इसी भावना से इस लेख को लिखने का अल्प बुद्धि से प्रयास किया है इससे कोई त्रुटि हो तो विज्ञजन सुधारकर जीवन को संस्कारित करें।
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