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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ इंद्रिय विषय कषाया,
धरिया तुरगाव व रज्जुहि । (स.सु) ज्ञान ध्यानऔर तपोबल से इन्द्रिय विषयों को बलपूर्वक रोकना चाहिए जैसे कि लगाम के द्वारा घोड़ों को बलपूर्वक रोका जाता है । संयम आवरण के चारों ओर लगायी जाने वाली बाड़ है, एक सीमा है । ............परिधि है ............यदि विद्वता के साथ असंयम है, तो उसका जीवन व्यर्थ है।
भावों की चपलता का कारण योग । मन,वचन, काय की प्रवृत्ति है। इसको संयम ही नियंत्रित कर सकता है। परमार्थ से संयम वही है जहाँ दया है । संयम ब्रेक है । आपसे जितना हो सके, उतना ही पालिये । यदि नहीं होता तो उस पर अश्रद्धा मत कीजिए। कुरल काव्य में कहा है :
संयम के माहात्म्य से मिलता है सुरलोक। और असंयम राजपथ रौरव का बेरोक ॥ संयम की रक्षा करने निधी सम ही श्रीमान,
कारण जीवन में नहीं बढ़कर और निधान । किसी भी नीतिकार ने कहा है :
संयम की आंध से पाषाण पिघल जाता है। प्रेम के गीत से इंसान भी बदल जाता है। संयम सहित प्रेम, यहाँ बांटेगा जो भी,
इन्सान ही नहीं, शैतान भी बदल जाता है। प्राकृत दशलक्षण धर्म की पूजा की जयमाल में भी कहा गया है :
संयम जणि दुल्लहु तं पाविल्लहु जो छंडइ पुणु मूदमई।
सो भमइ भवावलि जर मरणावलि किं पावे सुइपुणु सुगई। यह संयम धर्म लोक में दुर्लभ है। सब कुछ चीजें मिल जाती हैं, पर संयम रूप प्रवृत्ति होना अधिक दुर्लभ है। इस संयम का पालन करना जो छोड़ देते हैं वे मूद बुद्धि वाले है, वे जन्म मरण रूपी संसार के चक्र में भ्रमण करने वाले हैं। वे सुगति को कैसे प्राप्त कर सकते हैं। प्रथम तो सम्यग्ज्ञान होना ही दुर्लभ है और सम्यक्त्व भी मिल जाये तो देवेन्द्र जैसे भी महान आत्मा सम्यग्दृष्टि इस संयम को तरसा करते हैं । जब तीर्थंकर को वैराग्य होने लगा तो लौकांतिक देव आये और सभी देवता आये । जब तीर्थंकर देव वन को जाने की तैयार करने लगे तो इन्द्र ने पालकी सजाई जिस पर बैठाकर तीर्थंकर को वन में ले जाने लगे जब इन्द्र उस पालकी को उठाते हैं तो मनुष्य लोग मना कर देते हैं। तुम पालकी में हाथ नहीं लगा सकते, क्योंकि तुम्हें अधिकार नहीं। दोनों में विवाद छिड़ गया। जब सभी जन समूह में निर्णय हुआ तब इन्द्र ने अपना बयान दिया
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