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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जैनागम के मूर्धन्य मनीषी आचार्य समन्तभद्र का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
__पं. गुलाबचंद्र दर्शनाचार्य
___मदन महल जबलपुर प्रारंभिक कथ्य : जैनागम में जैनाचार्यों की अविस्मरणीय सेवाओं को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। इसी तारतम्य में आचार्य समंतभद्र प्रमुख हैं। आपका पूरा नाम आचार्य श्री समंत भद्र स्वामी है। समंतभद्र स्वामी धर्म, न्याय, व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष, आयुर्वेद, मंत्र आदि सभी विद्याओं में निपुण होने के साथ ही आप शास्त्रार्थ करने में अत्यंत कुशल थे। काशी नरेश के समक्ष उन्होंने जिस स्वाभिमान की परम्परा में अपना परिचय संस्कृत में श्लोक के माध्यम से दिया वह दृष्टव्य है :
"आचार्योऽहं कविरहमहं वादिराट पण्डितोऽहं, दैवज्ञोऽहं भिषगटमहं, मान्त्रि कस्तान्त्रिकोऽहम् । राजन्नस्यां जलधिवलया मेखलाया मिलाया
माज्ञा सिद्ध: किमिति बहुना, सिद्ध सारस्वतोऽहम् ॥" अर्थात् मैं आचार्य हूँ,कवि हूं, शास्त्रार्थियों में श्रेष्ठ हूँ, पण्डित हूँ, ज्योतिषज्ञ हूँ, वैद्य हूँ, मान्त्रिक हूँ, तंत्रिक हूँ, हे राजन् ! सम्पूर्ण पृथ्वी में, मैं आज्ञासिद्ध हूँ। अधिक क्या कहूँ, मैं सिद्धसारस्वत हूँ। अन्य आचार्यों के अभिमत: श्री आचार्य समंतभद्र का पावन स्मरण भगवज्जिनसेनाचार्य ने इस प्रकार किया है :
कवीनां गमकानां च, वादिनां वाग्मिनामपि ।
यश: सामंतभद्रीयं, मूर्ध्नि चूडामणीयते ॥ अर्थात् कवियों, गमकों, वादियों और प्रशस्त वक्ताओं के मस्तक पर समंतभद्र का यश चूणामणि के समान आचरण करता है।
___ इसी प्रकार वादिराज सूरि ने यशोधर चरित्र में श्री शुभचंद्रचार्य ने अपने ज्ञानार्णव नामक ग्रन्थ में, वर्धमान सूरि ने वराङ्गचरित्र में, वादीभसिंह आचार्य ने गद्य चिंतामणि में , आचार्य हस्तिमल्ल ने विक्रांत कौरव, वादीराज सूरि ने अपने "न्याय विनिश्चयालंकार" ग्रन्थ में अद्वितीय स्मरण किया है। श्री वीरनंदी आचार्य ने “चन्द्रप्रभचरित्र" नामक ग्रन्थ में आचार्य समंतभ्रद का उल्लेख अद्वितीय ढंग से किया है वह विशेष उल्लेखनीय है :
"गुणान्विता निर्मलवृत्तमौक्तिका, नरोत्तमैः कण्ठविभूषणीकृता ।
न हारयष्टि: परमेव दुर्लभा, समंतभद्रादिभवा च भारती॥" तात्पर्य है कि :
गुण - सूत्र सहित, निर्मल गोल मोतियों से युक्त एवं नरोत्तम - धनिकजनों के कण्ठ का आभूषण
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