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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ श्रद्धास्पद व्यक्तित्व के धनी जीवराज पापड़ीवाल ने लोकोक्ति अनुसार एक लाख प्रतिमाओं को विभिन्न जिनालयों में विराजमान किया था । भट्टकारक जी द्वारा चंदेरी की तीर्थंकरों के वर्ण के सदृश वर्ण वाली वर्तमान चौबीसी स्थापित की गई थी । ये मूर्तिपूजा के महत्व के प्रकाशक स्तंभ बने हुए हैं। प्रशस्तियाँ इसकी साक्षी हैं। अनेक विध्वंसों के परिणाम विशेष मूर्तियों के पुरावषेश मानव मन के श्रेष्ठ भक्ति मूलक विचारों, जीवन मूल्यों के उत्प्रेरक हैं एवं दिशा बोध हेतु समर्थ हैं।
पुराणों में मूर्तिपूजा और जीवन मूल्यों की स्थापना :- जैन पुराणों का मुख्य उद्देश्य पाप भीरुता, धर्म रूचि, आत्मश्रद्धान, धर्मायतनों के प्रति श्रद्धा, भक्ति, पुण्य कार्यों की प्रेरणा, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रहरूप पंचशील, तप-त्याग-संयम, अपराध निरोध और मोक्ष प्राप्ति की कामना आदि है । मूर्तिपूजा का महत्व महापुरुषों के चरित्र वर्णन के अंतर्गत प्रतिस्थापित किया गया है । अनेकों प्रेरक प्रसंग मानव जीवन मूल्यों को प्रकाशित करते हैं । पद्मपुराण के एकादि उल्लेख दृष्टव्य हैं -
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जब नारद आकाश मार्ग से बिहार कर कौशल्या माँ के पास आये तो माँ के पूछने पर उन्होंने सुमेरू पर्वत के चैत्यालयों की वंदना तथा भगवान के जन्माभिषेक का वृत्तान्त सुनाया, माँ को बड़ा हर्ष हुआ । सीता माता को तीर्थ वंदना का दोहला उत्पन्न होना व रावण को कैलाश पर्वत के चैत्यालयस्थ प्रतिमा के सम्मुख अत्यंत भक्ति से अपनी नस को निकाल कर वीणावादन जैसे भक्ति भाव से भविष्य में तीर्थंकर पद की भूमिका का निर्माण आदि के वर्णन श्रेष्ठ भाव को उद्दीपित कर, संचरित होते हुए स्थायित्व - प्राप्ति की प्रेरणा देते हैं। हेयोपादेय रूप ज्ञान की जागृति चैत्य भक्ति के माध्यम से होती है । मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम
द्वारा मंदिरों एवं प्रतिमाओं की स्थापना का वर्णन हमें भी अपने जीवन में श्रेष्ठ कार्य करने की प्रेरणा देता है। सती अंजना का चरित्र मानव जीवन के दुःख सुख भरे इतिहास का एक प्रेरक पृष्ठ हैं। पूर्व जन्म में अज्ञानता से प्रतिमा जी की अवज्ञा के कारण पाप संचय के परिणामस्वरूप अंजना को 22 वर्षो तक दुःख भोगना पड़ा। इस प्रसंग से मूर्ति व मूर्तिपूजा का महत्व उद्घाटित होता है। राजा दशरथ के द्वारा अि में जिनेन्द्र देव की पूजा और गन्धोदक का रानियों को वितरण, इनके अनुष्ठानों की पावनता का सूचक है। दृष्टव्य हैं निम्न पंक्तियाँ -
अष्टाहो पोषितं कृत्वाभिषेकं परमं नृपः । चकार महती पूजां पुष्पैः सहजकृत्रिमैः ॥ यथा नन्दीश्वरे द्वीपे शक्र - सुर- समन्वितः । जिनेन्द्र - महिमानंदं कुरुते तद्वदेव सः ॥ ततः सदनयातानां महिषीणां नराधिपः ।
प्रजिघ्राय महापूतं शांतिगन्धोदकं कृती ॥
इसी प्रकार महापुराण में भरत चक्रवर्ती के द्वारा भूत भविष्यत् वर्तमान तीन चौबीसी की प्रतिमाओं की स्थापना आदि का, हरिवंशपुराण में हरिषेण चक्रवर्ती द्वारा विपुल संख्या में मंदिर एवं मूर्तियों की
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