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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
भो ज्ञानी ! पहले वीतराग - विज्ञान नहीं होता, पहले भेद - विज्ञान ही होता है। आचार्य कुंद-कुंद स्वामी कहते हैं कि कर्म का बंध ज्ञान से किया है आपने, अध्ययन से नहीं किया। कर्म का बंध तुमने ज्ञान से किया है, अज्ञान से नहीं किया। भो चेतन! हिंसा करना पाप है- यह जानते हैं आप लोग कि हिंसा से कर्म भी होता है कर्म बंध भी होता है, उसका विपाक भी होता है, फल भी मिलेगा। इतना सब जानते हो, फिर भी हिंसा करते हो आप लोग । इसी प्रकार अब्रह्म भी पाप है, एक बार के अब्रह्म सेवन करने से 9 करोड़ जीवों की हिंसा होती है। इतना जानते हुए आप अज्ञानी बन जाते हो। पाँचों पाप आप अच्छी तरह जानते हो, तो पाप का बंध आपने अज्ञानता में किया है कि जानके किया है । अत: आप उमास्वामी महाराज से पूछ लेना कि कैसा कर्म आस्त्रव होगा ।
तीव्र - मंद - ज्ञाताऽज्ञात - भावाऽधिकरण - वीर्य विशेषेभ्यस्तद्विशेषः ॥ तत्त्वार्थ सूत्र । तीव्र, मंद, ज्ञात, अज्ञात भाव से बंध किया उसी प्रकार का तीव्र व मंद आस्त्रव होगा ।
भो ज्ञानी ! आप जान रहे हैं कि मैं गलत करने जा रहा हूँ । अशुभ समझ रहा हूँ फिर भी पाप आम्रव कर रहे हो और कहते हो कि हे प्रभु! मेरे पापों का क्षय हो जाये। जिनदेव कहते हैं कि पाप - कर्मों का क्षय करो, पाप क्रियाओं का समापन करो, तब पाप का क्षय होगा । संयम में दो काम होते हैं - अशुभ की निवृत्ति और शुभ की प्रवृत्ति अर्थात् पूर्व में रखे अशुभ कर्मों की निर्जरा और वर्तमान में आने वाले कर्मों का संवर । अत: जिस साधना में संवर नहीं है, वह साधना मोक्षमार्ग में कार्यकारी नहीं है, मुक्तिरानी मिलने वाली नहीं है । संवर यानि आते कर्मों को रोक देना और कर्मों की सेना को वहीं थाम देना ।
भो ज्ञानी ! मन, वचन, काय ये तीन गुप्तियाँ हैं। इंद्रियों के समाचार देने वाला, विषयों की सेना से संकेत कराने वाला, घर का भेदी यह मन है तथा कषायों को जाज्वल्यमान कराने वाला भी मन ही है । यहाँ जो तेरा मन बाहुबली है, उस मन पर विजय प्राप्त नहीं की, तो आप ध्यान रखो - पूरी दिग्विजय करके आ जा। फिर भी अधूरे हो । भोजन छोड़ देना, शरीर सुखा देना, घर छोड़ देना, परिवार छोड़ देना मगर जब तक मन को नहीं छोड़ा तो कुछ भी नहीं छोड़ा। मन को छोड़ना पड़ेगा तथा मन की छोड़ना पड़ेगी । ध्यान रखो ! आस्रव की सेना बहुत प्रचंड है, अनुशासनहीन है। जो क्रूर पापी होते हैं उनमें अनुशासन नहीं होता, तो घुसपैठ ही करते हैं। देखना, आप सामायिक करने बैठते हैं बिल्कुल शांत होकर, पर धीरे से प्रवेश कर कि दुकान की चाबी तो मेरी जेब में है । यह कौन प्रवेश कर गया ? इतनी अनुशासनहीन है आस्रव की सेना । आपको न तो सोते छोड़ती न जागते और तुझे भगवान के चरणों में भी नहीं छोड़ती है यह आस्रव की सेना ।
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भो चेतन ! यही बंध की अवस्था है। जैसे ही आप मिले और उसने फैलाया अपना जाल एवं कर्म से बांध लिया । शत्रु छिद्र ही तो देखता है, जैसे ही छिद्र मिला कि पानी ने प्रवेश किया। इंद्रियाँ जरा भी शिथिल होती हैं कि मन जैसे ही उड़ा और विशाल रूप धारण कर लिया । जब पिटता है, तो पता चलता है कि यह क्या हो गया । अतः मन को वश में करो। वचन भी छोटे मोटे नहीं है। विश्व में जितने बड़े - बड़े युद्ध
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