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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ अनुवाद, सम्पादन, मौलिक रचना, टीका आदि करना प्रारभ कर दिया । कलकत्ता में सन् 1946 में "अ.भा. दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्' की स्थापना के दो वर्ष पश्चात् सन् 1948 में संयुक्त मंत्री का और कुछ समय पश्चात् मंत्री पद का कार्य भार मेरे कन्धों पर रख दिया गया। प्राय: 30 वर्षों तक विद्वत्परिषद् की सतत् सेवा करते हुए प्राचीन संस्कृत-प्राकृत-हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कराना । हमारे द्वारा विरचित एवं प्रकाशित साहित्य अधोलिखित प्रकार है (1) प्रथमानुयोग के ग्रन्थ : आदिपुराण प्रथम द्वितीय भाग का अनुवाद, उत्तरपुराण का हिन्दी अनुवाद, पद्यपुराण प्र.द्वि.तृ. भाग का हिन्दी अनुवाद, हरिवंशपुराण का हिन्दी अनुवाद, गद्यचिन्तामणि ग्रन्थ की हिन्दी संस्कृत टीका, पुरूदेव चम्पू - हिन्दी - संस्कृत टीका, वर्धमानपुराण - हिन्दी टीका, चौबीसीपुराण (मौलिक), पार्श्वनाथ चरित - हिन्दी टीका, वर्धमान चरित - हिन्दी टीका, शान्तिनाथ चरित्र - हिन्दी टीका, महाकवि हरिचन्द्र - एक अनुशीलन - (शोध प्रबन्ध), जीबन्धर चम्पू - संस्कृत हिन्दी टीका, धर्म शर्माभ्युदय हिन्दी-संस्कृत टीका, इत्यादि 25 ग्रन्थ। (2) करणानुयोग शास्त्र : धर्मकुसुमोद्यान सानुवाद (मौलिक), कुन्द कुन्द भारती- सानुवाद, करणानुयोग दीपक - प्र.द्वि. भाग । त्रिलोकसार की प्रस्तावना, कर्मकाण्ड की प्रस्तावना । जीवकाण्ड की प्रस्तावना । चैतन्य कर्मचरित्र आदि। (3) चरणानुयोग शास्त्र तथा स्तोत्र आदि जैन काव्य रत्नकरण्डक श्रावकाचार हिन्दी टीका । अशोकरोहिणी व्रतोद्यापन (मौलिक) । सहस्र नामांकित वृषभजिन पूजा (मौलिक)। पंचस्तोत्र संग्रह सानुवाद। मन्दिर वेदी प्रतिष्ठा और कलशारोहण विधि। स्वयंभूस्त्रोत (सटीक) । सुभाषित मंजरी भाग 1-2 । क्रियाकोष सानुवाद सम्पादन आदि 19 ग्रन्थ । (4) द्रव्यानुयोग शास्त्र - मोक्षशास्त्र सटीक | आराधना सार सटीक । तत्त्वार्थ सार सटीक । समय सार सटीक । अष्टपाहुड़ सटीक । द्रव्यानुयोग प्रवेशिका | अध्यात्मामृत तरंगिणी । लघुतत्वस्फोट सटीक । सम्यक्त्व चिन्तामणि (मौलिक)। सज्ज्ञानचन्द्रिका (मौलिक)। सम्यक चारित्र चिन्तामणि (मौलिक) मूलाचार भाग 1-2 सटीक । समयसार सम्पादन आदि 22 ग्रन्थ । अ.भा. विद्वत्परिषद् के माध्यम से अनेक ग्रन्थों का प्रकाशन कराया एवं अनेक अभिनंदन ग्रन्थ । स्मृति ग्रन्थ । समीक्षा ग्रन्थ । स्त्रोत साहित्य । पूजन अर्चन साहित्य । प्रकीर्णक अभिलेख आदि। ___ इस प्रकार डॉ. पन्नालाल जी ने ज्ञानपूर्ण योग बल से संस्कृत साहित्य के विभिन्न अंगों का सृजन कर जैन संस्कृत साहित्य के साथ ही भारतीय संस्कृत साहित्य को पल्लवित किया है और प्रफुल्लित किया है। इसी विशेष कारण से आपके करकमलों में राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। सम्यक् शास्त्र ज्ञान का मंथन कर वस्तुतत्व का सारभाग आविष्कृत करना प्राचीन आचार्यों की एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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