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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आवश्यकता अनुभव करने लगे हैं कि धार्मिक शिक्षा की आज के राष्ट्रीय जीवन में सबसे बड़ी आवश्यकता है। देश की एकांगी प्रगति कभी हितकर नहीं हो सकती। हमारे महामहिम राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति और संत विनोवा जैसे राष्ट्र के महापुरूष अब बार बार यही बात कहते हैं कि अध्यात्म ज्ञान के बिना कोरा विज्ञान मानव जाति की समृद्धि के बजाय विनाश का ही कारण बनेगा । इसलिये राष्ट्रीय भौतिक समृद्धि के लिये विज्ञान की उन्नति जितनी अपेक्षित है उससे भी कहीं अधिक राष्ट्रीय चरित्र को उज्जवल बनाये रखने के लिए धर्म की भी आवश्यकता है। फिर इतिहास इस बात का साक्षी है कि जैन समाज ने कभी भी धार्मिक हितों के लिए राष्ट्रीय हितों को खतरे में डालने का प्रयत्न नहीं किया। प्रत्युत राष्ट्रीय हित में ही अपने धार्मिक हितों का संरक्षण माना है। इसलिए धर्म निरपेक्ष राजनीति की गलत व्याख्या मानकर हमारी समाज का जो शिक्षित वर्ग प्रायः धर्म के प्रति उदासीन बनता जा रहा है उसे अपनी मिथ्याधारणाओं को हटाकर धार्मिक हितों को भी उतना ही महत्व देना चाहिये जितना राष्ट्रीय हितों को दिया जाता है। यदि इसमें हमने भूल की तो निश्चित ही हमारी संस्कृति और धर्म का लोप होकर सामाजिक पतन होकर रहेगा | अत: यह समझने की जरूरत है कि राजनीति भले ही धर्म निरपेक्ष हो पर हमारा जीवन धर्म निरपेक्ष नहीं होना चाहिये। धर्म तो जीवन को उज्जवल और उच्चतम बनाने का सर्वश्रेष्ठ तत्व है। आज हमारे सामने विशेष चिंता का विषय यही है कि हमारी समाज और विशेषत: नई पीढ़ी धर्म के महत्व को भूलती जा रही है। नास्तिकता धीरे-धीरे सामाजिक जीवन का एक अंग बनती जा रही है । अत: समय रहते हमें अपने सामाजिक जीवन में धर्म की जागृति का वातावरण निर्मित करना है और समाज के इस नये महत्व पूर्ण अंग को पतनावस्था से बचाना है । वर्तमान में हमारी समाज में जो भी धार्मिक प्रवृतियाँ दृष्टिगत हो रही है वे भी निष्प्रभ और निष्प्राण सी हैं। जहां चरित्र है वहां ज्ञान की न्यूनता है। और जहां ज्ञान है वहां चरित्र की हीनता है। और जहां दोनों है वहा कदाग्रह दृष्टिगत हो रहा है। इस तरह धार्मिक दृष्टि से हमारा सामाजिक जीवन बड़ा अस्त व्यस्त दिखाई पड़ता है। साधु संस्थायें धर्म का प्रमुख अंग होती हैं पर उनका अस्तित्व न के बराबर है। और जो हैं भी उनसे इस प्रकार चमत्कृति की कल्पना करना दुराशा मात्र है। अत: मिशन के इस अधिवेशन में धर्म के सम्बन्ध में हमें मुख्य दो बातों पर ही विचार करना आवश्यक होगा। प्रथम यह कि धार्मिक दृष्टि से हमारे सामाजिक जीवन का किस तरह से कायाकल्प किया जावे ताकि समाज का चारित्रिक और नैतिक स्तर ऊंचा उठे । और दूसरा यह कि लोक जीवन में किस प्रकार जैन साहित्य के प्रति अभिरूचि उत्पन्न हो जिससे लोग जैन धर्म की महत्ता समझकर उसके प्रति निष्ठावान बनें। ___ इस सम्बन्ध में मेरा अपना विचार यह है कि समय की मांग को ध्यान में रखते हुये हमें अपने धर्म प्रचार और धर्म प्रभावना के साधनों में बहुत जल्दी परिवर्तन कर देना चाहिये । और इसके लिये यह जरूरी है कि हमारी समाज का जो विपुल द्रव्य अनावश्यक मूर्तियों , मंदिरों और उपकरणादि विभिन्न जड़ प्रसाधनों में व्यय किया जाता है उसके स्थान पर उसे सम्यज्ञान के आधारभूत प्रसाधनों में (पाठशालायें, विद्यालय, कॉलेज, छात्रालय, पुस्कालय, साहित्य निर्माण व साहित्य का अधिकाधिक (411 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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