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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ प्राणी) उत्पन्न होते रहते हैं । उन जीवों की हिंसा को रोकने के लिए वस्त्र से पानी को छानकर उपयोग में लाना आवश्यक कहा गया है।
विज्ञान का प्रयोग है कि - बिना छने पानी को सूर्य की किरणों में रखकर देखने से बहुत से त्रसजीव चलते फिरते दिखाई देते हैं । और जो बहुत सूक्ष्म जीव हैं जो खुर्दवीन से दिखाई देते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक कैप्टेन स्क्वोर्सवी ने अणु वीक्षणयंत्र से देखकर पानी की एक बूंद का फोटो खींचा और उसमें 36450 जीव (कीटाणु) सिद्ध किये हैं। इसका फोटो गवर्नमेंट प्रेस इलाहाबाद से प्रकाशित “सिद्ध पदार्थ विज्ञान" पुस्तक में प्रकाशित हुआ है। उस बूंद में कुछ जीव इतने सूक्ष्म हैं कि जो यंत्र से भी दिखाई नहीं देते। अतः शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तथा अनेक रोगों से बचने के लिए वैज्ञानिक दृष्टि से भी जल छानना आवश्यक है।
जैनदर्शन में अहिंसा धर्म की रक्षा के लिए एवं स्वास्थ्य की रक्षा के लिए रात्रि भोजन त्याग की महत्वपूर्ण शिक्षा दी गई है -
"विज्ञान कहता है कि दिन के समान, रात्रि में सूर्य का प्रकाश न होने से वायु निर्दोष नहीं चलती है। दिन में वृक्ष आक्सीजन छोड़ते हैं किन्तु रात को वे वृक्ष आक्सीजन बाहर नहीं निकालते, जहरीली वायु निकालते हैं इसी कारण दिन में रोग कम फैलते हैं तथा रोगों का प्रकोप भी रात में अधिक बढ़ता है। मृत्युएँ भी इसी कारण रात को अधिक होती है। उस जहरीली वायु का सम्पर्क भोजन के पदार्थो से भी होता है।" (जैनधर्म का परिचय पृ. 145)
"विज्ञान ने सूर्य के प्रकाश को जीवन शक्ति प्रदायक तत्व सिरजने का मुख्य कारण माना है। सेव आदि फलों के छिलके को स्वस्थ और सुन्दर सूर्य का प्रकाश ही बनाता है इसी लिए डॉक्टर लोक छिलके सहित फलों को खाने की शिक्षा देते हैं।" (डॉ. कामता प्रसाद)
वैज्ञानिक दल भी शुद्ध स्वच्छ शाकाहारी भोजन का ही समर्थन करता है और अशुद्ध गंदा-मांसाहारी भोजन का विरोध करता है। इस विषय के कुछ प्रमाणों का भी विचार कीजिए -
"सन् 1918 में पेरिस (फ्रांस) में" इन्टर अलाइड कान्फ्रेस हुई थी, जिसमें सब देशों के बड़े-बड़े डॉक्टरों ने घोषित किया था कि मानव को किंचित् भी मांस भोजन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि शरीर को उसकी जरूरत नहीं है । (मानव जीवन में अहिंसा का महत्व - पृ.42)
___ "आजकल तो यूरोप और अमेरिका में भी कितनी ही ऐसी समितियाँ स्थापित हो गई है जो मांसाहार का पूर्ण रूप से डटकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से निषेध करती हैं और शाकाहार का प्रचार करती है।" उपसंहार -
जैनदर्शन के प्रमुख सिद्धांत और साधारण मान्यताएँ यथायोग्य विज्ञान के आविष्यकारों और सिद्धांतों के साथ समानता रखकर अपना विशेष महत्व प्रगट करती है कारण है कि विज्ञान जहाँ समाप्त होता है वहाँ से जैनदर्शन का प्रारंभ होता है जिसमें भौतिक विज्ञान, आत्मिक विज्ञान के आश्रित है।
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