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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ उठाते हैं, पर जब उन्हें आप जैसे छायादार शीतल वृक्ष की प्राप्ति हो जाती है तब वे बहुत ही खुश होते हैं और आपके आश्रय में बैठकर अपने सब दुःख को भूल जाते हैं । एक अन्य भक्तामर स्तोत्र नाम की पुस्तक काश्री पं. पन्नालाल जी सा.ने सम्पादन किया है। जिसमें श्रीचन्द्रकीर्ति कृत संस्कृत टीका, श्री गिरिधर शर्माकृत हिन्दी पद्यानुवाद, स्वकृत अन्वयार्थ तथा भावार्थ का समावेश है। इस पुस्तक का प्रकाशन श्रीसन्मति कुटीर, चन्दावाड़ी सी.पी. टेंक, बम्बई नं. 4 से हुआ है।
__ पंचस्तोत्रसंग्रह का प्रकाशन स्व. सेठ किशनदास पूनमचन्द्रजी कापड़िया (सूरत) स्मारक ग्रंथमाला नं. 3 के द्वारा हुआ हैं।
भक्तामर स्तोत्र इतना प्रिय और मनोहर है कि इसके प्रत्येक पद्य के चतुर्थ चरण को समस्या की पूर्ति के रूप में लेकर, संस्कृत कवि श्री मुनिरत्न सिंह जी ने संस्कृत में 'प्राणप्रिय काव्य' की रचना कर दी है। श्रीनेमिनाथ और श्री राजुलमती के विरह को इस प्राणप्रिय काव्य का वर्णनीय विषय बनाया गया है और मास्टर छोटेलाल जैन ने इसका हिन्दी पद्यानुवाद किया है । उदाहरणार्थ, एक नवम पद्य प्रस्तुत है -
नेत्रामृते सुहृदिनाथ निरीक्षतेऽपि, हृष्यन्ति यद्भुवि विशोऽत्र किमद्भुतं तत् । मित्रोदयेऽपि च भवन्ति विचेतनानि, “पद्माकरेषु जलजानि विकासभाजि ॥१॥ स्वामी सुधानयन के तुम हो स्नेही, तो क्यों नहीं मुदित हो नर देखके ही । सूखे हुए कमल ही जल - आशयों के, होते प्रफुल्ल लखि ज्यों रविमित्र को वे ॥10॥"
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