________________
कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ महाराज, नाभिराज का प्रिय करने के लिये उनके रनिवास में महारानी मरुदेवी के गर्भ से, वातरशना (दिगम्बर) श्रमणऋषियों और ऊर्वरतामुनियों का धर्म प्रकट करने के लिये, शुद्ध सत्त्वमय विग्रहधारी ऋषवदेव के रूप में अवतरित हुए अर्थात् अवतार लिया। (श्रीमद भागवत् पुराण: स्क्रन्ध ५, अ0 २: पद्य २०)
"श्राम्यन्ति इति श्रमणाः मुक्त्यर्थं तपस्यन्ते इत्यर्थ :। जो मुक्ति के लिये तपस्या करते हैं, उन्हें श्रमण कहते हैं । "श्रमणा : वातरशना आत्मविद्या विशारदा:"। वातरशन श्रमण आत्मविद्या में विशारद (प्रवीण) होते हैं । (श्रीमद् भागवत, अ0 ११ पद्य २)
सन्तुष्टा: करुणा मैत्रा: , शान्ता दान्तास्तितिक्षवः । आत्मारामा: समदृश:, प्रायश: श्रमणा: जनाः ।।
(भागवत, स्कन्ध १२: अ0 ३, पद्य १९) केश्यग्नि: केशी विषं केशी विभर्मि शेदसी । केशी विश्व स्वहसे , केशीदं ज्योतिरुच्यते ॥
(ऋग्वेद 10/136/1) भावसौन्दर्य - ऋषभ (केशी सुन्दर केशधारी) मुनिदशा में अग्नि, जल, स्वर्ग और पृथ्वी को धारण करता है । वह विश्वदृश्वा, प्रकाशमान ज्योति (केवलज्ञानी) है।
मुनयो वातरशना:, पिशंगा वसते मला: । वातस्यानुध्रांजियन्ति, यद् देवासो अविक्षत ॥
(ऋग्वेद 10/136/23 ऋचा) अतीन्द्रयार्थ दर्शी वातरशना मुनि (श्रमण) स्नान न करने से मलधारण करते हैं जिससे वे पिंगलवर्ण दिखाई देते हैं, जब वे प्राणायाम करते हैं तब वे तप की महिमा से दैदीप्यमान होकर देवतारूप को प्राप्त हो जाते हैं । मौनवृत्ति से अशरीरी ध्यानवृत्ति को प्राप्त हो जाते हैं।
___ वातरशन श्रमणमुनि, जो ब्रह्मपद की ओर उत्तक्रमण करने वाले हुए थे। उनके पास अनेकों ऋषि प्रयोजनवश आये और उन्होंने अनेकों प्रश्न पूछे । श्रमण मुनियों ने उनके लिये आत्म विद्या का उपदेश दिया। (तैत्तरीय आरण्यक २, प्रपाठक-६, अनु, १-२) विदेशों में दिगम्बर श्रमणों का विहार:
दिगम्बर श्रमणों ने न केवल भारत में विहार कर मानव समाज को सम्बोधित किया, अपितु विदेशों में भी विहार करते हुए जनसमाज को धार्मिक चेतना प्रदान की है। इस विषय में कतिपय उद्धरण प्रस्तुत किये जाते हैं:
-235
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org