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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ द्वारा धार्मिक विकास और वस्तु तत्व तथा विश्व तत्वों के द्वारा दार्शनिक विकास का समाज में श्री गणेश किया । तदनुरूप सभ्यता का निर्माण किया। कारण कि बिना संस्कृति और सभ्यता के मानव समाज का सच्चा निर्माण नहीं हो सकता है। आज भी स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए धार्मिक तत्वों और दार्शनिक तत्वों की आवश्यकता है। अतएव समाज में दशलक्षण पर्व के निमित्त से धार्मिक तत्वों का विकास किया जाता है। सामाजिक रीति के अनुसार यह महा पर्व वर्षाकाल में अधिक मनाया जाता है कारण कि इस समय प्रकृति का वातावरण शीतल व हरा भरा रहता है । लौकिक कार्यो की शिथिलता या मन्दता हो जाने से धार्मिक कर्तव्यों का अधिक आचरण होता है। तीसरी विशेषता यह कि वर्षा ऋतु में तत्त्व ज्ञानी चारित्रवान् पूज्य मानवों का चातुर्मासिक योग होने से एक स्थान पर उनकी स्थिर संगति समाज को प्राप्त हो जाती है | जिससे समाज में तत्त्वोपदेश से ज्ञान का विकास होता है। समाज का संगठन दृढ़ होता है, सेवा की भावना जागृत होती है, कुरीतियों का निवारण होता है, धर्म प्रभावना होती है । धार्मिक महोत्सव और सभाओं के अधिवेशन सफलता के साथ सम्पन्न होते हैं। साहित्य का प्रचार होता है । इस प्रकार महापर्व सामाजिक महत्त्व रखता है। राष्ट्रीय महत्व - कर्मयुग के प्रारम्भकाल में जब भ. ऋषभदेव ने सर्व प्रथम राष्ट्रों की स्थापना की, तब राष्ट्रों में स्थायित्व, विकास, शान्ति, स्वास्थ्य, नैतिक शिक्षा, सत्यता और न्याय की विस्तारता के लिए आत्म श्रद्धा, क्षमा, विनय आदि धार्मिक धाराओं का प्रचार किया गया। राष्ट्रों के तत्व और शासन अहिंसा तथा सत्य मूलक स्थापित किये गये । यह परम्परा उस समय से प्रवाहित होकर आज भी अपनी सत्ता रखती है। ___ आधुनिक राष्ट्रों के नये विकास, उन्नति और स्थायित्व के लिये भी दशलक्षण धर्म, अहिंसा, सत्य आदि धार्मिक सिद्धान्तों की आवश्यकता है। राष्ट्रों की अनेक समस्याएँ उक्त सिद्धांतों से सफलीभूत हो सकती है। जैसे सुरक्षा की समस्या अहिंसा से, परिवार नियोजन की समस्या ब्रह्मचर्य से , अन्न रक्षा की समस्या- अनशन आदि तप, व्रत, संयम सादा भोजन आदि से, मांसाहार त्याग की समस्या शाकाहार से हल की जा सकती है । दशलक्षण धर्म तथा रत्नत्रय धर्म की साधना कि बिना राष्ट्रों का स्वस्थ जीवन स्थायी नहीं हो सकता है। वैज्ञानिक महत्व - विज्ञान ने मानवता को ही भगवान और नैतिक पुरूषार्थ को ही धर्म माना है और मानवता तथा नैतिकता का विकास दशलक्षण धर्म के द्वारा हो सकता है और अवश्य होता है अतएव दश धर्म तथा अहिंसा आदि धर्म ही महान विज्ञान हे । जिसके आविष्कारक तीर्थंकर थे । वर्षाकाल के विषैले असंख्यात प्राणी, संक्रामक कीटाणु तथा तज्जन्य अनेक रोग अपना प्रभाव दश धर्मो के साधक मानव पर नहीं छोड़ सकते । वर्षाकालिक महा पर्व की मान्यता का यह भी एक महत्व है । इस प्रकार यह पर्युषण पर्व सार्वभौम सिद्ध होता है। -229 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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