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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ परिग्रह तथा सुवर्ण रूपया आदि वहिरंग परिग्रह से अहंकार और ममकार का परित्याग करना), (10) ब्रह्मचर्य - (आत्मा के गुणों में लीन रहना, या उनको जानना इन्द्रिय विषयों का त्याग, काम विकारों का त्याग, असभ्य फैशन का त्याग, बालवृद्ध तथा अनमेल विवाह का त्याग, अनावश्यक दहेज प्रथा का बहिष्कार, अवैद्य व्यभिचार तिरष्कार, बहुपत्नी विवाह का बहिष्कार, नारी अपहरण का परित्याग आदि) इन दश धर्मो के द्रव्य तथा भाव अथवा निश्चय तथा व्यवहार के भैद से दो दो भेद होते हैं जिनको क्रमश: मुनि तथा गृहस्थ पालन करते हैं।
इन दश धर्मो के साथ उत्तम विशेषण का प्रयोग तीन दृष्टि से है जैसे सम्यग्दर्शन सहित क्षमा उत्तम क्षमा है । सर्वदेश क्षमा ( मुनि की क्षमा) उत्तम क्षमा है। विश्व में क्षमा धर्म - उत्तम क्षमा है । इसी प्रकार सब धर्मो में समझना चाहिये ।
दश धर्मो की उपासना करने में रत्नत्रय धर्म की प्रथम आवश्यकता होती है । दश धर्म पालन करने की सफलता रत्नत्रय धर्म पर अबलम्बित है अतएव इसी भाद्रमास में रत्नत्रय धर्म की उपासना करने का विधान है। वह तीन प्रकार का है - 1. सम्यग्दर्शन- आत्मा आदि सात तत्वों की तथा वीतराग देव शास्त्र गुरू की, तीन मूढ़ता तथा आठ मद के प्रभाव से हीन अष्टांग पूर्ण श्रद्धा करना और संवेद, निर्वेद अनुकम्पा तथा आस्तिक्य गुणों का धारण करना। 2. सम्यग्ज्ञान- निर्दोष श्रद्धापूर्वक तत्वों के समीचीन तथा अष्टांग पूर्ण ज्ञान का विकास करना | जिस ज्ञान में संदेह, असत्यता और विभ्रम दोष नहीं होते हैं । 3. सम्यक्चरित्र - निर्दोष श्रद्धान तथा समीचीन ज्ञान पूर्वक विकार भावों का त्याग कर आत्म चिन्तन करना, पंच महाव्रत, पंच समिति तथा तीन गुप्ति इन तेरह अंगों की साधना द्वारा कर्मक्षय का पुरुषार्थ करना ।
पूर्व गाथा में कथित "च" शब्द से सोलह भावनाओं का ग्रहण करना भी धर्म कहा जाता है। जो भावनाएँ तीर्थंकर पद के माध्यम से स्वहित के साथ समस्त लोक का कल्याण करती हैं। भाद्रमास इन भावनाओं की विशेष रूप से साधना की जाती है। इनके दृढ़ संकल्प का रचनात्मक रूप "षोडशकारणव्रत " के नाम से प्रसिद्ध है जो भाद्रमास तीस दिनों में सम्पन्न होता है । वे पवित्र भावनाएँ इस प्रकार हैं1. दर्शनविशुद्धि 2. विनयशीलता, 3. शोलव्रतेष्वनतिचार, 4. अभीक्षणज्ञानोपयोग, 5. संवेग, 6. शक्तितस्त्याग, 7. शक्तितस्तप, 8. साधु समाधि, 9. वैयावृत्य, 10. अर्हद्भक्ति, 11 आचार्य भक्ति 12.बहुश्रुत भक्ति, 13. प्रवचन भक्ति, 14. आवश्यकापरिहाणि, 15. मार्ग प्रभावना, 16. प्रवचनवत्सलत्व ।
इनके अतिरिक्त गाथा में 'अहिंसा' लक्षण वाला महान धर्म भी कहा गया है। धर्म ग्रन्थों में अहिंसा सबसे बड़ा धर्म और हिंसा सबसे बड़ा पाप कहा गया है । अहिंसा की प्रमुख दो धाराएँ हैं :1. महाव्रत 2. अणुव्रत । महाव्रत की उपधारायें पाँच हैं :- 1. अहिंसा महाव्रत 2. सत्य महाव्रत, 3. अचौर्य महाव्रत, 4. ब्रह्मचर्य महाव्रत, 5. परिग्रह त्याग महाव्रत । अणुव्रत की भी 5 उप धाराएँ हैं :- 1. अहिंसाणुव्रत 2. सत्याणुव्रत, 3. अचौर्यायुव्रत, 4. ब्रह्माचर्याणुव्रत, 5. परिग्रहपरिमाण अणुव्रत । इन सब व्रतों के द्रव्य और भाव के भेद से दो दो रूप होते हैं। इन सब व्रत अथवा यम नियमों से अहिंसा सिद्धांत की साधना
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