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________________ कृतित्व / हिन्दी अपराजित मंत्रोयं, सर्वविघ्न विनाशक: । मंगलेषु च सर्वेषु, प्रथमं मंगलं मतः ॥ तात्पर्य - अपराजित, सर्वविघ्नविनाशक यह महामंत्र सब मंत्रों में प्रथम (आद्य) मंत्र आचार्यो द्वारा मान्य किया गया है। 6. प्रथम मंगल मंत्र - जो अक्षय आत्मिक सुख को प्रदान करे उसे मंगल कहते है । अथवा जो हिंसादि पापों को एवं ज्ञानावणादि कर्मों को विनष्ट करे उसे मंगल कहते हैं अथवा जो आत्मज्ञान या ध्यान के निकट प्राप्त करावे उसे मंगल कहते है । णमोकार मंत्र सर्वप्रथम मंगलमय है और मंगल को करने वाला है इसलिये सर्वप्रथम मंगलमय मंत्र है । उसी विषय को आचार्य उमास्वामी ने स्पष्ट किया है 'मंगलाणं च सव्वेसिं, पदमं हवई मंगलं " अर्थात् - यह महामंत्र सर्व मंगल मंत्रों में प्रथम मंगलमंत्र है । - 7. मंगल सूत्र - चत्तारि मंगलं - अरहंता मंगलं, सिद्धामंगलं, साहूमंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमाअरहंता लोगुत्तमा सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णतो धम्मो लोगुत्तमो । चत्तारि सरणं पव्वज्जामि अरहंते सरणं पव्वज्जामि सिद्धेशरणं पब्बज्जामि, साहूसरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि | साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ अर्थात् - अरिहन्त, सिद्ध, साधु एवं जैन धर्म ये चार देव, लोक में मंगल, उत्तम और शरणरूप हैं। इस मंगल सूत्र में संक्षिप्त रूप से साहू शब्द आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठी का वाचक है, अत: यह मंगलमंत्र का मंगल सूत्र है। सूत्र संक्षिप्त अक्षरवाला होता है। 8. ग्रहारिष्ट निवारक मंत्र यह महामंत्र दूषित नवग्रहों को शान्त करने वाला होता है। किस मंत्र के पद से किस ग्रह की शान्ति होती है इसका विवरण इस प्रकार है। - ओं हृीं णमो अरिहंताणं ओं हृीं णमो सिद्धाणं ओं हृीं णमो आइरियाणं ओं हृीं णमो उवज्झायाणं बुध ग्रह का निराकरण । ओं ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं शनि, राहु, केतु ग्रहों की शान्ति । अतिशय पुण्यात्मा चौबीस तीर्थकरों के भक्तिपूर्वक अर्चन से भी नवग्रहों की शान्ति होती है। किस तीर्थकर के अर्चन से किस दूषितग्रह की शान्ति होती है। इसका क्रमशः विवरण इस प्रकार हैं 215 Jain Education International सूर्य, मंगल ग्रहों की शान्ति । चन्द्र, शुक्र ग्रहों का निवारण । गुरु ग्रह दोष की शान्ति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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