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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
हम सब अल्प ज्ञानी मानव अपेक्षावाद (स्यादवाद) से ही वस्तु के एक देश को जान सकते हैं परन्तु विश्वदर्शी आत्मा प्रमाण ज्ञान के द्वारा लोक के सब पदार्थो को स्पष्ट जानने में समर्थ है "।
(1) (धर्मयुग 22 अप्रैल सन् 1956)
( 2 )
( अनेकान्त वर्ष 11, किरण 3 पृ. 243)
(1) पाश्चात्य दार्शनिक विद्वान “विलियम जेम्स" महोदय के प्राग्मेटिज्म (Pragmatism) के सिद्धांत की तुलना अनेक दृष्टियों से स्याद्वाद के साथ सिद्ध होती है।
(2) जर्मन देशीय तत्त्ववेत्ता हेगिल (Hegel) महोदय की मान्यता है कि विरूद्ध धर्मात्मक वस्तु का सिद्ध होना ही संसार का मूल है। किसी वस्तु के वास्तविक तत्त्व का वर्णन अवश्य करना चाहिए, परन्तु उसके साथ वस्तु के विरूद्ध दो धर्मो का वर्णन समंवय रूप से भी करना आवश्यक है । अन्यथा वस्तु पूर्ण व्यवहार नहीं हो सकता ।
(3) श्री वैज्ञानिक ब्रेडले महोदय की मान्यता है कि प्रत्येक वस्तु निज रूप में आवश्यक होते हुए भी, उससे इतर वस्तु की तुलना में तुच्छ भी है। यहाँ विवक्षा से वस्तु को मुख्य एवं गौण कहा गया है।
(अहिंसा दर्शन पृ. 302-303)
7.
जैन दर्शन में आत्मा (जीव ) की मान्यता -
भगवान महावीर स्वामी की आचार्य परम्परा ने विश्व के मूल छह द्रव्यों में प्रथम सात तत्त्वों में प्रथम और नव पदार्थो में प्रथम द्रव्य आत्मा स्वीकार किया है । जिसकी परिभाषा इस प्रकार है -
अस्ति पुरूषश्चिदात्मा, विवर्जित: स्पर्शगन्धरसवणैः । गुणपर्ययसमवेतः, समाहितः समुदयव्ययध्रौव्यैः ॥ ( आचार्य अमृतचंद्र पुरूषार्थ पद्य 9 वि.सं. 962) सारांश - जो निश्चय दृष्टि से अखण्ड ज्ञानदर्शन स्वरूप है । व्यवहार दृष्टि से स्पर्श गन्ध, रस, वर्ण से रहित, गुण पर्याय से सहित और उत्पाद, व्यय, नित्यत्व संयुक्त अनंत शक्ति सम्पन्न सूक्ष्म तत्त्व आत्मा
है ।
वैज्ञानिक मान्यता - "शरीर के कन्धे परजीव बैठता है और दोनों के साथ से पुण्य तथा पाप होता है "। (महात्मा टालस्टाय, अहिंसावाणी, अगस्त 1956 )
श्री राल्फ बाल्डो इमर्सन की सूक्तियाँ आत्मा के विषय में - (1) आध्यात्मिक का सच्चा अर्थ ही वास्तविक है ।
(2) संसारी आत्मा बीरान परमात्मा है।
(3) अविश्वास धीमी आत्महत्या है।
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