________________
कृतित्व / हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
(3) दिल (श्रद्धा), दिमाक (ज्ञान) के स्वस्थ (सदाचरण युक्त) रहने पर ही आत्मा महान् शान्ति का अनुभव करता है.
(वैज्ञानिक सर अलवर्ड आइन्स्टीन जर्मन) (4) वह व्यक्ति नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता । विश्वास पूर्वक ज्ञान सदाचार को नाता है।
(हिन्दुस्तान सन् 1963 जनवरी) (5) हैट (विश्वास), हार्ट (विज्ञान), हैण्ड (आचरण) इन तीन स्वस्थ साधनों से ही मानव जीवन के कार्य बहुत अच्छे होते है ।
(वैज्ञानिक टेनिसन)
(6) जिस प्रकार पिपर मेन्ट, अजवानफूल, कपूर ये तीनों युगपत् सम मात्रा में मिलकर अमृत धारा को जन्म देते हैं और वह रोगों से मुक्त करती है। उसी प्रकार सम्यक् रत्नत्रय युगपत् मिलकर अमृत धारा (मोक्ष मार्ग) को दर्शाते हैं । और वे कर्म रोग मुक्त करते हैं ।
(विज्ञान पूर्ण भौतिक प्रयोग) |
(7) "देखभाल कर चलो" - आचार्य प्रवर विद्यासागर | 5. जैन दर्शन में अहिंसा की व्याख्या -
यत्खलु कषाय योगात्,प्राणानां द्रव्यभावरूपाणाम् । व्यपरोपणस्यकरणं, सुनिश्चिता भवति सा हिंसा ॥
(पुरूषार्थ. अमृत चंद्राचार्य, श्लो. 43 / वि.सं. 962)
सारसौन्दर्य - क्रोध, अभिमान, माया, लोभ आदि कषाय भावों से सहित मन वचन शरीर, कृत कारित अनुमति द्वारा अपने एवं दूसरे प्राणियों के ज्ञान आदि भाव प्राणों का तथा शरीर आदि द्रव्य प्राणों का विनाश करना हिंसा पाप है और इस पाप हिंसा का मन वचन काय, कृत कारित अनुमति से भाव पूर्वक त्याग करना अहिंसा की परिभाषा है।
वैज्ञानिक मान्य अहिंसा तत्व -
"मैं आप लोगों से विश्वास पूर्वक यह बात कहूँगा कि महावीर स्वामी का नाम इस समय यदि किसी भी सिद्धांत के लिए पूजा जाता हो तो वह अहिंसा है। मैंने अपनी शक्ति के अनुसार संसार के जुदे - जुदे धर्मो का अध्ययन किया है और जो जो सिद्धांत मुझे योग्य मालूम हुये हैं उनका आचरण भी मैं करता रहा हूँ । प्रत्येक धर्म की उच्चता इसी बात में है कि उस धर्म में अहिंसा का तत्त्व कितने परिमाण में है और इस तत्त्व को जिसने अधिक से अधिक विकसित किया है वे एक महावीर स्वामी ही थे " ।
(महात्मा गाँधी: जैन जगत्, 1 अप्रैल 1927 से उद्धृत )
205
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org