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कृतित्व/हिन्दी
तीर्थंकर महावीर का समाजवाद
विश्व में अवतरित चौबीस तीर्थंकरों की प्राचीनता, सत्ता और महत्ता, भारतीय इतिहास पुराण पुरातत्व वेद तथा तीर्थ क्षेत्र आदि प्रमाणों से सिद्ध होता है। सब ही तीर्थंकरों ने राष्ट्र में स्वस्थ समाजों की स्थापना कर उनका कल्याण एवं सुधार किया है, परन्तु श्री ऋषभदेव और श्री महावीर के समाज निर्माण में
ही विशेषता ज्ञात होती है। वह यह कि कर्म युग के प्रारंभ में मानव भोले अज्ञानी तथा सरल स्वभावी थे । उनकी समाज रचना में अनेक सामाजिक तत्त्वों का आविष्कार कर श्री ऋषभदेव ने महान् श्रम से उन तत्त्वों को समाज में ढाला और समाज का कल्याण किया ।
इसी प्रकार श्री महावीर ने भी सामाजिक तत्त्वों का प्रयोग कर बहुत परिश्रम से समाज का किया, कारण कि महावीर के समय मानव अज्ञानी एवं कुटिल स्वभावी थे और कुटिल स्वभावी को समझा कर सन्मार्ग पर लगाना एक महत्वपूर्ण कार्य है ।
तीर्थंकर महावीर ने समाज का निर्माण अहिंसावाद, स्याद्वाद अध्यात्मवाद और अपरिग्रहवाद इन धार्मिक सिद्धांतों के ही आधार पर किया था। उन्होंने व्यक्ति की उन्नति से ही समाज की उन्नति करना प्रारंभ किया, कारण कि उन्होंने समाज का मूलाधार व्यक्ति को माना था । अतएव उस वीर आत्मा ने मिथ्या प्रवृत्तियों को तिरस्कृत कर हित प्रद प्रवृत्तियों को जन्म दिया था। जिन प्रवृत्तियों या कर्तव्यों से पतित एवं समाज एक प्रबल प्रभावक नेता की ललकार को सुनकर उन्नतिशील सजग, ज्ञानशील और शक्तिशाली
बन गया था ।
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उन कर्तव्य की धाराओं को एवं मानवीय गुणों को अपने हृदय पट पर लिखने का कष्ट कीजिये ।
अन्धविश्वास को त्यागकर सत्य दृढ विश्वास धारण करना । आध्यात्मिक तथा लौकिक ज्ञान का विकास करना ।
पाँच अणुव्रत रूप पंचशील की साधना करना ।
मादक, अभक्ष्य तथा अनिष्ट वस्तुओं का त्याग करना ।
अच्छे विचार तथा निरोग शरीर को बनाने के लिए शुद्ध खाद्यान्न जलादि का सेवन करना और दुर्व्यसनों का परिहार ।
क्रूरता के निराकरण के लिए मांसाहार का त्याग |
परमात्मा तथा सच्चेगुरु के गुणों का स्मरण करना ।
विश्वमैत्री, परोपकार और सहयोग की रचनात्मक भावना ।
नैतिक एवं धार्मिक रीति से योग्य विवाह करना ।
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
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10. न्यायपूर्ण पंचायतों की स्थापना करना ।
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