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कृतित्व / हिन्दी
दण्डो हि केवलो लोकमिमं चामुं च रक्षति । यज्ञा शत्रौ च पुत्रे च यथादोषं समं धृतः ॥
(सागार धर्मामृत अ. 4 श्लो. 5 की संस्कृति का )
भावार्थ - राजा के द्वारा न्याय या धर्म की रक्षा के लिए शत्रु एवं पुत्र के विषय में अपराध के अनुकूल दिया गया समान दण्ड इस जीवन में और परलोक जीवन में मानव की रक्षा करता है ।
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
अहिंसा - कायरता नहीं है -
कुछ व्यक्तियों का मत है कि अहिंसा कायरता का ही रूप है, कायर पुरूष ही इसे अपनाते है, परन्तु उनका यह कथन विचार शून्य है । अहिंसा की व्याख्या, प्रयोग और अहिंसा धारी शासकों के इतिहास से यह सिद्ध हो जाता है, कि अहिंसा सिद्धान्त में कायरता को लेश मात्र भी स्थान नहीं है । अहिंसा और कायरता (भीरूता) में आकाश और पाताल तथा अन्धकार और प्रकाश जैसा अंतर है तथाहि - अहिंसा परम धर्म है और कायरता पाप है । अहिंसा धारी मानव पवित्र हृदयी, बलिष्ठ और रक्षक होता है, किन्तु कायर मनुष्य कपटी क्रूर और भक्षक होता है | अहिंसा से उन्नति होती है और कायरता से पतन होता है । अन्याय अत्याचार को I सहन नहीं करना अहिंसा है और उसे सहन करना कायरता है। अहिंसाधारी मानव का हृदय उदार एवं निडर रहता है जब कि कायर पुरूष का चित्त क्षुद्र एवं शंकित रहता है।
"घर में अन्न नहीं इसलिये उपवास करो, पास में पैसा नहीं इसलिए संतोष करो, भुजाओं में बल नहीं इसलिए क्षमा करो, कुछकर नहीं सकते इसलिए शान्त रहो"- यह आदर्श अकर्मण्य ( का पुरूष) का हो सकता है किन्तु जिसके हृदय में अदम्य उत्साह और शरीर में बल है वही अहिंसा का पालन कर सकता है । उस व्यक्ति में, अकर्मण्य पुरूष के उक्त लक्षणों से भिन्न लक्षण होते हैं। अहिंसक मानव की दयालु परोपकारी हो सकता है उस व्यक्ति का पृथ्वी ही कुटुम्ब हो जाता है। इस विषय में महात्मा गाँधी के विचार मनन करने के योग्य हैं -
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" अहिंसा में कायरता के लिए स्थान है ही नहीं । अहिंसा का तो पहला पाठ है अभयता ( निर्भयता), सहिष्णुता, क्षमा, धैर्य ये अहिंसा के अंश है । निर्भयता और कायरता का निवास एक ही स्थान में असम्भव है । शस्त्र संचालन के कौशल को अथवा हिंसा को शौर्य समझना भूल है । उसी प्रकार केवल अत्याचार सहन करने का नाम भी अहिंसा नहीं हो सकता। शौर्य एक आत्मिकगुण है". (हिन्दी नव जीवन 23 अप्रैल सन् 1922 g.285)
अन्य शब्दों में गाँधी जी के विचार -
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"हिंसा करने की पूरी सामर्थ्य रखते हुए भी जो हिंसा नहीं करता है वही अहिंसा धर्म पालन करने में समर्थ होता है। जो मनुष्य स्वेच्छा से और प्रेमभाव से किसी की हिंसा नहीं करता वही अहिंसा धर्म का पा करता है। अहिंसा का अर्थ है प्रेम, दया, क्षमा । शास्त्र उसका वर्णन वीर के गुण के रूप में करते हैं। यह वीरता
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