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________________ कृतित्व / हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ प्रथम कक्षा के कर्तव्य - 1. अहिंसा व्रत को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करना । 2. नीतिविरूद्ध, देशविरुद्ध, शासन विरूद्ध कार्य न करना। 3. मदिरा, मांस, मधु, ऊमर, कठूमर, पीपलफल, बड़फल, पाकर फलों का त्याग करना । 4. हृदय में मैत्री तथा दयाभाव धारण करना । 5. रात्रि भोजन त्याग का अभ्यास करना । 6. गालित तथा शुद्ध जल का उपयोग करना । 7. निर्दोष (18 दोष रहित ) देव, शास्त्र, गुरु की संगति करना । 8. हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पंचपापों के त्याग का अभ्यास करना । 9. जुआ, मांस, मद्य, वेश्यासेवन, प्राणियों का शिकार, चोरी, परस्त्रीसेवन इन 7 महापापों का त्याग करना । 10 त्रस प्राणियों की हिंसा का त्याग करना |11. चमड़े आदि के व्यापार का त्याग। 12. अन्यायपूर्वक द्रव्य के व्यापार का त्याग करना । अहिंसा की द्वितीय कक्षा के कर्तव्य - 1. प्रथम कक्षा के नियमों को निर्दोषरीति से पालन करना। 2. सत्यार्थ देव (परमात्मा), सत्यार्थ विद्या, सत्यार्थ गुरु की दृढ़ता से संगति एवं भक्ति करना। 3. अहिंसा आदि बारह व्रतों का निर्दोष रीति से दृढ़तापूर्वक पालन करना । 4. दैनिकचर्या को सुदृद रखना। 5. राष्ट्रीय तथा सामाजिक द्रोह, छल, मद, तृष्णा, मूर्च्छा आदि का त्याग करना। 6. देश तथा समाज का कल्याण करना। 7. दृढ़ प्रतिज्ञापूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना । 8. सुवर्ण, चाँदी, रूपये, धान्य, वस्त्र, वर्तन, मकान, अहंकार, मूर्च्छा आदि परिग्रह का त्याग करना जो कि उत्तरोत्तर एक देश त्याग दृढ़ता से हो। 9. नैष्ठिक श्रावक की 11 प्रतिमाओं की निर्दोष रीति से साधना करना । अहिंसा की तृतीय कक्षा के कर्तव्य - 1. अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह इन पाँच महाव्रतों की मन, वचन, कर्म, कृत, कारित, अनुमति, संरम्भ, समारम्भ, आरम्भ इन 27 प्रकारों (3.3=9.3=27) से साधना करना। 2. जीव रक्षण के लिए सावधानता से शरीर - वचन तथा मन की शुद्ध क्रिया करना। 3. समता, वंदना, स्तवन, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय तथा शरीर से मोह का त्याग करते हुए खड्गासन या पद्मासन लगाकर आत्मा का ध्यान करना इन छह आवश्यक दैनिक कर्तव्यों का पालन करना । 4- स्पर्शन, रसना, नासिका, नेत्र, कर्ण, इन पंच इन्द्रियों के विषयों का त्याग करते हुए उन पर विजय प्राप्त करना। 5- मन वचन शरीर इन तीन योगों का वशीकरण करना । 6- वस्त्र धारण का त्याग । 7-केशों का लुञ्चन करना । 8- स्नान का त्याग 9- भूमि पर एक करवट से सोते अल्प निद्रा लेना 10 दिन में एक बार लघु भोजन ग्रहण करना । 11- दन्त धावन तथा दंत मंजन का त्याग | 12- खड़े होकर हाथों पर विधिपूर्वक शुद्ध आहार ग्रहण करना । 13 अनशन (उपवास), ऊनोदर (भूख से कम भोजन करना), भोजन के विषय में नियम ग्रहण करना, रस त्याग करना, एकान्त पवित्र स्थान में शयन करना या आसन लगाना, शरीर से मोह छोड़कर अधिक समय तक आसन लगाना एवं 6 बाह्यतपों की साधना करना। 14- प्रायश्चित (दोषों की शुद्धि करना), विनय, वैयावृत्य ( धर्मात्मा मानवों की सेवा करना), स्वाध्याय से ज्ञान की वृद्धि करना, मिथ्याधारणा आदि अंतरंग तथा धन - महल आदि बहिरंग परिग्रह से अहंकार को Jain Education International 153 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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