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साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
जीवन झाँकी स्मरणीय - ___"सरस्वती पुत्र डॉ. पं. दयाचंद्र साहित्याचार्य से. नि. प्राचार्य श्री दिग. जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर का जीवन दर्पण"
सरस्वती पुत्रों के सम्मान एवं अभिनंदन की शाश्वत् परम्परा रही है। जैन समाज के पुरानी पीढ़ी के आर्ष मार्गी विद्वानों में अधिकांश विद्वान दिवगंत हो चुके हैं। अधिकांश दिवंगत विद्वानों के स्मृति ग्रन्थ प्राय: समय के अनुसार प्रकाशित हो चुके हैं। पुरातन विद्वानों की परम्परा में जिन पर समाज को गौरव है तथा जो आध्यात्मिक बुन्देलखण्ड के संत पू. गणेश प्रसाद जी वर्णी महाराज के शुभाषी प्राप्त आज्ञाकारी रहे हैं, उनमें स्वनाम धन्य सरस्वती पुत्र डॉ. पं. दयाचंद्र साहित्याचार्य पूर्व प्राचार्य श्री गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय वर्णी भवन सागर प्रमुख रहे हैं। आपका सम्पूर्ण जीवन महाविद्यालय की सेवा में व्यतीत हुआ है। इनका देहावसान 91 वर्ष की आयु में 12/02/2006 को हो गया है, ऐसे मनीषी आदर्श प्रतिभा के धनी विद्वत-रत्न का स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित कर जैन समाज गौरव का अनुभव करती है। जन्म
आपका जन्म श्रावण शुक्ला नवमीं बुधवार संवत् 1972 तदनुसार 11 अगस्त 1915 (11/08/1915) को सागर जिलान्तर्गत शाहपुर (मगरोन) में शुभवेला में हुआ था । आपके पिता श्री का नाम पण्डित भगवानदास जी भाईजी था, आपकी माताजी का नाम श्रीमती मथुरा बाई था । माता-पिता के धार्मिक संस्कारों का प्रभाव पूरे परिवार पर अक्षुण्ण रूप से रहा । हीरा की खान से हीरा ही निकलता है। यह सुखद संयोग रहा कि स्व. भगवानदास जी भाईजी के पँचों पुत्र देश स्तर के प्रतिष्ठित विद्वत प्रवर हुये, जिन पर समाज आज भी गौरव का अनुभव करती है। सबसे ज्येष्ठ पुत्र स्व. पं. माणिकचंद्र जी स्वर्ण पदक प्राप्त न्याय काव्य तीर्थ, स्व. पं. श्रुतसागर जी प्राचीन नव्य न्याय काव्यतीर्थ, तृतीय पुत्र स्व. डॉ. पं. दयाचंद्र जी साहित्याचार्य (वर्तमान में स्मरणीय) स्व. पं.धर्मचंद्र जी शास्त्री तथा आज के देश स्तर के सफल प्रतिष्ठाचार्य "पं. अमरचंद्र जी प्रतिष्ठा रत्न/प्रतिष्ठाचार्य" प्रारंभिक शिक्षा एवं गृहस्थ जीवन -
आपकी प्राथमिक शाला स्तर की शिक्षा शास. प्राथमिक शाला शाहपुर में सम्पन्न हुई। आप विशेष धार्मिक एवं संस्कृत साहित्य की शिक्षा प्राप्त करने श्री गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर में पू. वर्णी जी के शुभाशीष एवं अपने पिताश्री की प्रेरणा से प्रविष्ट हुये तथा साहित्याचार्य एवं सिद्धांत शास्त्री आदि परीक्षायें मेघावी छात्र के रूप में उत्तीर्ण की। पं. जी का पाणिग्रहण संस्कार सन् 1940 में तहसील खुरई जिला सागर में हुआ था। इनकी पाँच पुत्रियाँ हैं । चार पुत्रियाँ सुखी गृहस्थ जीवनयापन कर रही हैं, सबसे छोटी पुत्री ब्र. किरण जैन अपने पूज्य पिताजी की सेवा कर अपना संयमी एवं व्रती जीवनयापन कर रही हैं, आप भी एम.ए. तथा सिद्धांत शास्त्री हैं ।
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