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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मोती विखराते थे। मोती की कीमत भौतिक संसार में होती है और ज्ञान रूपी मोती की कीमत मोक्ष मार्ग में होती है। उन्होंने अपने घर परिवार को एवं विद्यालय के अनेकों छात्रों को ऐंसा ज्ञान से संस्कारित किया है कि आज भी विद्यार्थी उनके संस्कारों को नहीं भूलते हैं और पग पग पर उनके दिये ज्ञान मोती को याद करते रहते है। हमारे पिताजी तो इस मनुष्य भव को पार कर गए यहां से चले गए और हम सभी बहनों पर अपने संस्कारों की अमिट छाप छोड़ गये, जिन संस्कारों को हम लोग क्षण क्षण याद करते रहते है। और अपने पिताजी का स्मरण करते रहते हैं ऐसे हमारे पिताजी जिनेन्द्र भगवान के चरणों में हर क्षण शांति लाभ धर्म लाभ प्राप्त करें ऐसी हमारी शुभ कामना हैं।
अविस्मरणीय मेरी आँखों के तारे पिताजी
श्रीमती राजेश्वरी जैन, रायसेन म.प्र. जैसे तारागणों से आकाश शोभायमान होता है वैसे ही हमारे पिताजी से भी हमारा घर शोभायमान था। कहीं से भी हम आते थे और पिताजी दिख जाते थे तो मन प्रसन्नता से भर जाता था। क्योंकि हमारे घर में बस पिताजी ही बड़े थे, हम सब बहनें छोटे- छोटे थे। वे अपने वात्सल्य से हम लोगों को पढ़ाते, लिखाते थे धर्म की शिक्षा देते थे, सुमार्ग पर चलाते थे वे ही संस्कार हम लोगों के जीवन में प्रकट हुये हैं। जैसे आकाश में तारे झिलमिलाते हैं वैसे ही हमारे जीवन में पिताजी भी प्रत्येक कार्य में आगे पीछे झिलमिल होते थे, क्योंकि प्रत्येक कार्य में हमारे पिताजी का ही हमें आश्रय मिला है, कितनी भी आपत्ति या दुख जीवन में आता था तो उनकी सांत्वना से हम लोगों को बड़ी शांति मिलती थी, समता आती थी, ऐसा लगता था कि बस मेरे पिताजी ही जीवन के सहारे हैं, उनको देखने मात्र से बड़ा धैर्य और साहस बंध जाता था। ऐसा लगता है कि वे पिता के रूप में ही हमें धर्म का मार्ग दर्शन देने आये थे मार्ग दर्शन देकर चले गये, हमारे जीवन में अमिट छाप छोड़ गये । उनका यह उपकार हम भव भव में नही भूल सकते । स्मृति ग्रंथ के रूप में जो उनका स्मरण किया जा रहा है, उसके प्रति मैं भी अपनी विनयांजलि समर्पित करती हूँ।
हम सब बहिनों के आंखों के तारे पिताजी हम लोगों को छोड़कर चले गये। और अपना आशीष दे गये। उनकी सद्गति की कामना के साथ ।
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