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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ समझते थे यदि ठण्ड का समय होता था और विद्यार्थी के शरीर पर स्वेटर नहीं होती थी तो वे चादरा ओढ़कर कक्षा में विद्यार्थी को बुला लेते थे।यदि छात्र बीमार है तो उसके इलाज हेतु प्रत्येक समय प्रतिबद्ध रहते थे । वे विद्यार्थी के दुःख सुख सभी में जुड़े रहते थे।
अथक परिश्रमी :- 85 वर्ष की उम्र में भी जिनकी लेखनी अविरल चलती रही उन परिश्रम के पुजारी को प्रणाम । उनकी लेखनी चलती रही, जबान पढ़ती रही एवं आँखे देखती रहीं, मन मस्तिष्क चिंतन शील बना रहा, कलम के धनी थे उनके सारगर्भित लेख उनके चिंतन का नवनीत हुआ करता था । रात्रि के 11, 12 बजे तक अध्ययन व लेखन करते रहते थे उनके हृदय में सरस्वती का वास था । परिश्रमी व्यक्ति ही जीवन को उन्नत बना सकता है । सो उनने बनाया।
संयमी जीवन :- पण्डित जी जीवन भर बड़े विवेकी एवं संयमी रहे उनके त्याग और आचरण की अलग विशेषता थी कभी भी शाही विवाह में सामूहिक भोजन को नहीं जाते थे दीदी किरण जी स्वयं एक संयमी बहिन है अत: वे अपने पिताजी को शुद्ध व सात्विक भोजन कराती थी अष्टमी चतुर्दशी व्रतों में संयमी जीवन व्यतीत करते थे उनका अधिकांश से ज्यादा जीवन ब्रह्मचर्य से व्यतीत हुआ।
___ डाक्टरेड उपाधि से विभूषित :- अपने वैदुष्य व पाण्डित्य से तब और विभूषित हो गये थे जब उन्होंने जैन पूजा काव्य पर शोध प्रबंध सम्पन्न किया तथा पीएच.डी. उपाधि को जीवन के अंतिम छोर तक प्राप्त करने में कसर नहीं छोड़ी इसी से प्रतीत होता है कि वे जिनवाणी के प्रति कितने समर्पित थे उनका शोध प्रबंध पूर्णत: चिंतनात्मक एवं मौलिक था वे बड़े कर्मठ थे दिन रात एक करके अपने लक्ष्य का पीछा करते थे यही पाठ विद्यार्थियों को पढ़ाते थे।
विद्यालय के सजग प्रहरी :- पू. ग. प्रसाद जी वर्णी का उनके ऊपर वरदहस्त था उनके आशीष व मार्ग दर्शन से उन्होंने विद्यालय में ज्ञानतरू के नीचे बैठकर अध्ययन किया तथा पश्चात् उसी विद्यालय में अपनी सेवाएँ देना प्रारंभ कर दी थी। तथा अंत में संस्था के प्राचार्य पद को भी प्राप्त किया था अपने सम्पूर्ण जीवन को विद्यालय के नाम मानों उन्होंने रजिस्टर्ड कर दिया हो विद्यालय मात्र अल्प वेतन ही दे पाता था जिसमें उन्होंने हमेशा संतोष स्वीकार किया। विद्यालय के विभिन्न अंगों का ध्यान वे रखते थे शरीर के किसी अंग को जब कष्ट होता है तो सारा शरीर कष्टमय रहता है। ठीक उसी प्रकार विद्यालय के ऊपर कभी कुछ होता आर्थिक स्थिति गड़बड़ाती तो पंडित जी तुरंत चिंतित होने लगते थे उन्होंने विद्यालय का हमेशा आर्थिक संरक्षण किया व हमेशा सजग रहते थे।
स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी :- पंडित जी एक निर्भीक एवं स्वाभिमानी विद्वान रहे उन्होंने पैसे के पीछे तथा निजी स्वार्थवश कभी भी अपने स्वाभिमान को आंच नहीं आने दी। वे साहस के साथ जीवन जीते चले गये । छोटे-छोटे हवा के झोंकों की उन्होंने परवाह नहीं की तथा बड़े-बड़े झंझबातों की थपेड़ों को भी सहन किया किन्तु स्वाभिमान हमेशा सुरक्षित रखा उनका रहन सहन भी सदा साफ व स्वच्छ रहता था। धोती, कुर्ता, जाकिट व टोपी उनकी वेशभूषा थी।
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