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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ डॉ. पं. दयाचंद साहित्याचार्य जी समाज के आदर्श कीर्ति स्तंभ
सुरेश चंद जैन वारौलिया
वी 677, कमलानगर आगरा बुंदेलखण्ड की भूमि आरंभ से ही वीर प्रसूता की जननी रही है। छत्रसाल जैसे प्रजापालक राजनीतिक धर्मवत्सल विद्वान राजाओं ने इस भूमि को पवित्र किया है। उसी प्रकार यह भूमि विद्वत्ता प्रसूता भी रही है। पूज्य गणेशप्रसाद वर्णी जी ने बुंदेलखण्ड में जन्म लेकर यहाँ जन समुदाय का भारी कल्याण किया है जिनकी सत्कृपा से आज जैन जगत में जैन धर्म के विषय में अनेकों मनीषी साक्षर बने है । इसीलिए बुंदेलखण्ड के कौने कौन में पंडित समुदाय दिखता है । यहाँ सामान्य विद्वान से लेकर अच्छे अच्छे आचार्य न्याय शास्त्र, व्याकरण शास्त्र साहित्याचार्य जैसी उपाधियाँ प्राप्त विद्वान मौजूद है।
उसी कड़ी में पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य जी उस गुलाब के प्रसून सदृश्य है जो कष्ट रूपी कंटकों में पलकर भी देश और समाज के हित में गौरव की सुंगध देता है। वे तपे तपाये गुलाब थे, उनकी कार्यकृतियों की महक से आज भी श्री गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय वर्णी भवन मोराजी का प्रांगण सुशोभित सुरक्षित और सुवासित है । विद्वता की विभूति शिक्षा के क्षेत्र में आपने संस्कृत महाविद्यालय को वट वृक्ष के रूप में सिंचित किया है, संजोया है । अनेकों विद्वानों को सम्यज्ञान की ज्योति से धर्मामृत पान कराया है जो आज भी नक्षत्रों की भांति चमकते हुए समाज व राष्ट्र की सेवा कर रहे है। तथा विभिन्न क्षेत्रों में अपने साथ आपकी यशो गाथा भी प्रसारित कर रहे है।
आप शिक्षा जगत के क्षेत्र में कुशल शिक्षक ही नहीं बल्कि संस्कृत महाविद्यालय वर्णी भवन मोराजी सागर के प्रमुख कुशल प्राचार्य भी रहे है। जैन समाज आज अपने मूर्धन्य विद्वान साहित्याचार्य पं. दयाचंद जी की उच्च कोटि की विद्वता और निश्छल सेवाओं से गौरवान्वित है । पंडित जी साधनामय ज्ञाननिष्ठ भोगों से विरक्त संयमी जीवन सम्पूर्ण जैन समाज के लिए आदर्श कीर्ति स्तंभ है।
पंडित जी ज्ञान के धनी थे। विद्वत्ता की विभूति थे उन्होंने अनेकों कृतियों को जन्म और जीवन दिया आपकी अनेकों रचनाएँ “जैन पूजा काव्य एक चिंतन", "धर्म राजनीति में समंवय' आदि अनेकों धार्मिक शोध पूर्ण आलेख जैन दर्शन में सम्यक ज्ञान धर्मानुरागी बंधुओं के लिए पथ प्रदर्शन का कार्य कर रही है । आपने जीवन भर विद्या की आराधना की थी, आपकी वाचन प्रतिपादन एवं लेखन शैली में मोहकता प्रकट होती है।
आपकी स्मृतियों को संयोज रखने के लिए स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन से विद्वानों त्यागियों का सम्मान गौरव तो बढ़ेगा ही, साथ ही धर्म की प्रभावना को सब ओर फैलाएँगा। ज्ञान गंगा का यह भागीरथ जिस लोक में हो उनके चरणों में शत शत वंदन है ।
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