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शुभांशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ माणिक चंद श्रुत सागर दयाचंद, धर्म अमरचंद जयजयकार ।।2।। कितना सुन्दर सहज योग था, यहीं पढ़े थे यहीं पढ़ाय । गणेश वर्णी द्वारा संस्थापित, जैन संस्कृत महाविद्यालय ।। साहित्याचार्य, सिद्धांत शास्त्री, डाक्टरेड का पुण्य पुरुषार्थ । लघु सुपुत्री किरण जैन ने , पितु सेवा की संयम सार्थ ॥3॥ पचपन वर्ष पर्यन्त रहे हैं, पद प्राचार्य उपलब्धि संग। 'विद्वत् रत्न' उपाधि पाई, तज वेतन लिया सेवा प्रण ।। छ: वर्षों तक मानद सेवा, बड़ा कठिन है समय जो आज । वय इकानवें नित्यमह अर्चन, जिनवर वंदन उनका राज ||4|| कूचा सेठ दिल्ली की गादी, धर्म दिवाकर चांदी पत्र । साहित्य भूषण सोला पुर से, किया सम्मानित विद्वत महासंघ ॥ श्रुत संवर्धन पुरस्कार से, पाया मान जगत में श्रेष्ठ । विद्वत शिविर के सफल कुलपति, पीएच.डी का शोध प्रबंध ।।5।। सन् बाबन से दो हजार तक, भारत भर में किया गमन । दस लक्षण की पुण्य बेला में, जिनवाणी का पुण्य प्रवचन ॥ तन मन धन के योगदान से, किया समर्पण पूर्ण जनम । धन्य धन्य वे दयाचंद जी, कीर्ति पुंज जिन जगत सुवंद्य ||6|| शिष्य श्रृंखला दीर्घ काय है, भद्रभाव थे मंद मुस्कान । धीर वीर गंभीर अध्येता, आकर्षक था वदन प्रमान ।। साहित्य सपर्या चली लेखनी, "जैन जगत में पूजा काव्य" । "महावीर का मुक्तक स्तवन", "चर्तुविंशति संधान महाकाव्य"॥ "धर्म राजनीति में होय समन्वय", "तत्व प्रकाशक है स्याद्वाद"। "अमर भारती भाग तीन है", अन्य अप्रकाशित बहुंतहि वाद ।। किया आपने लोक गमन है, पुण्य बेला भी मस्तकाभिषेक । श्रवण बेल गोल बाहुबली का, बारह फरवरी दो हजार छह ॥
- अंतभावना - पंडित के भी हुए सुपंडित, किया आप पंडित वत् मरण । अंतिम क्षण तक पंचप्रभु का, किया जिन्होंने पुण्य स्मरण ।। गौरव गाथा आज गायकर, धन्य हुआ है जैन समाज । नमन 'पवन' का पुण्य पुरुष को, श्रुत सेवा की धांरू ताज ॥9॥
पं. पवन कुमार जैन शास्त्री दीवान,
मुरैना म.प्र.
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