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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
धर्म के अभाव का तात्पर्य है कि धर्मात्मा का अभाव है । जीवों का परम सौभाग्य है कि उन्हें प्रलय काल के निकट जाती हुई इन घड़ियों में भी महायोगी सत्पुरुषों का सान्निध्य प्राप्त हुआ है उनके मार्गदर्शन का लाभ मिल रहा है । सत्पुरुषों के दिव्यगुणों के आलोक में मनुष्य अपना मार्ग खोज सकता है सत्संगति से मनुष्य में परिवर्तन आ जाता है । भर्तहरि ने नीतिशतक में बताया है कि
जाऽयं धियो हरति सिञ्चति वांचि सन्यं मानोन्नति दिशति पापमपांकरोति ।
चेतः प्रसादयति दिक्ष ननोति कीर्ति
सव्संगति कथय किंन करोति पंसाम || सज्जनों की संगत बुद्धि की जड़ता को दूर करती है वाणी में सत्य का सिंचन करती हैं । सम्मान का बघारा करती है पाप नाबूद करती है मन को प्रसन्न करती है दिशाओं में कीर्ति फैलाते है । सज्जनों की संगत मनुष्य को क्या नहीं कर सकती है अर्थात सब कुछ कर सकती है ।
चतुर्विध संघ के आधार है शास्त्रीय शबदों में - "अम्मा पियरो इव"
आप न्याय एवं अनुशासनप्रिय हैं । निष्पक्ष एवं दूरदर्शी हैं । आचार्यत्व के गरिमामय पद के गुरुत्तर उत्तरदायित्वों में भी स्थिति परिस्थिति एवं वातावरण की प्रतिकूलता में भी आपश्री की अद्भूत शांति होती हैं। द्रव्य-क्षेत्र-काल भाव कैसी भी अनुकूलता प्रतिकूलता हो हरस्थिति में हम आपके सौम्य-शांत, प्रशांत धीर, गंभीर, अप्रभत मुद्रा के ही दर्शन करते हैं ।
अथाह जल की गहराई को नापना हास्यास्पद चेष्टा ही है । आपकी छत्रछाया में आपके अलौकिक गुणों के आलोक में मेरी उस क्षमता में निरंतर वृद्धि हो जो मुझे संयम साधना में सुदृढ रखती है । गुरुदेव के पावन चरणों में हृदय की असीम श्रद्धा समर्पित करते हुए शासनदेव से प्रार्थना करते हैं कि सरल परिणामी गुरुदेव का जैन शासन को युगों युगों तक मार्गदर्शन मिलता रहे इसी अभिलाषा के साथ कोटिशः अभिनंदन वंदन
"हर नयी किरण, हर नया अलोक, हर नया प्रातः तुम्हें शुभ हो । हर नया चान्द, हर नया सितारा, हर नयी रात तुम्हे शुभ हो ।
आप तरे हमे भी तारे
साध्वी मोक्षमालाश्री समस्त कुग्रहों के विनाशक,सूर्य के समान प्रकाशक जिस के आधार पर 2970 वर्ष तक प्रभु का शासन चलने वाला हैं । और 2004 में युग प्रधान और बहुत आचार्य होने वाले हैं । 36 गुणों के धारक ऐसे आचार्य भूतकाल में भविष्य काल एवं वर्तमान काल में अपनी आराधना के बल पर जैन शासन को टिका के रखेंगे... |
। पूर्व के आचार्य भगवंतों की साधनाओं को आप देखेंगे तो आपको भी लगेगा की प्रभु का शासन कितना महान हैं । यह शासन उनमें कितने गहराई तक उतर गया होगा ...? जिससे चाहे वे गौतमस्वामी हो या दुघभट्टसूरि हो....|
कैसे कैसे महान अपमान को उन्होंने सहन किया, इच्छाओं पर नियंत्रण रखकर इस शासन की संपत्ति अपने को प्राप्त करवाई हैं । अपने को मिला हुआ शासन किस किस प्रकार वैष्णव, बौद्ध, दिगम्बर अश्रद्धा के आक्रमणों के बाद भी यह शासन टिका हैं।
उसी शासन की धुरा को वहन करने वाले सौधर्म बृहत्त तपागच्छीय श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के षष्टम पट्टधर पू. गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. हमें प्राप्त हुए ।
निकट उत्पीति में हो तर सोता 28 जानकर आयोति मलय जयोति
हेमेन्द ज्योति* हेमेन्द ज्योति
28 हेमेन्द ज्योति* हेमेन्ट ज्योति